Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Feb, 2019 12:28 PM
वैदिक तथा महाभारत काल तक भारतीय ज्योतिष में राशियों का प्रारंभ नहीं हुआ था। उस समय ज्योतिष विज्ञान केवल नक्षत्र विज्ञान ही था। नक्षत्रों के आधार पर ही विभिन्न ग्रहों का शुभाशुभ फल कथन किया जाता था। आज हम नक्षत्रों के आधार पर फल कथन की विद्या को भूल...
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वैदिक तथा महाभारत काल तक भारतीय ज्योतिष में राशियों का प्रारंभ नहीं हुआ था। उस समय ज्योतिष विज्ञान केवल नक्षत्र विज्ञान ही था। नक्षत्रों के आधार पर ही विभिन्न ग्रहों का शुभाशुभ फल कथन किया जाता था। आज हम नक्षत्रों के आधार पर फल कथन की विद्या को भूल से गए हैं। हां, फलकथन के अतिरिक्त अधिकांश ज्योतिषीय कार्य नक्षत्रों के आधार पर ही करते आ रहे हैं। जन्म नक्षत्र के आधार पर ही जातक का नामकरण किया जाता है। जातक की योनि, तारा, गण, नाड़ी, युंजा पाया आदि का आधार भी नक्षत्र ही हैं। सभी प्रकार की महादशाओं का निर्धारण चंद्र नक्षत्र के आधार पर ही किया जाता है। मुहूर्त, शुभाशुभ योग, विवाह एवं संस्कारादि भी नक्षत्रों के आधार पर ही होते हैं परंतु फलकथन में नक्षत्रों का महत्व समाप्त सा हो गया है। फलकथन में राशियां प्रमुख और नक्षत्र गौण हो गए। आज के वैज्ञानिक युग में भी नक्षत्रों का महत्वपूर्ण योगदान है। मानव का सारा जीवन काल उसके जन्म-नक्षत्र पर निर्भर करता है। आपका जन्म नक्षत्र कौन-सा है, उसी जन्म नक्षत्र का प्रभाव आपके सम्पूर्ण जीवन पर पड़ता है। जन्म नक्षत्र का प्रभाव इस प्रकार माना गया है :
अश्विनी : इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति मेधावी, स्वार्थी, साहसी, चालाक और घमंडी होते हैं। ये स्वतंत्रता प्रिय, ईश्वर-प्रेमी, सुंदर, भाग्यवान, कार्यकुशल, स्थूल शरीर, धनवान और स्त्रियों से अपना काम निकालने में चतुर होते हैं।
भरणी : इस नक्षत्र के जातक निरोग, सत्यवक्ता, दृढ़प्रतिज्ञ, सुखी, उत्तम, विचारों वाले और धनी होते हैं। इन्हें आकस्मिक दुर्घटना का योग रहता है। ये संबंधियों से लाभ पाने वाले परस्त्री-अनुरागी तथा दीर्घायु होते हैं।
कृतिका : इस नक्षत्र के जातक चालाक, एकांतप्रेमी, दीर्घाहारी, आकर्षक व्यक्तित्व के धनी, विषय विशेष के ज्ञाता होते हैं। इन्हें झूठी गवाही तथा व्यर्थ की मुकद्दमेबाजी का शौक भी रहता है।
रोहिणी : इस नक्षत्र के जातक मिष्ठान प्रेमी और सुंदर-आकर्षक व्यक्तित्व वाले, कुशाग्र बुद्धि एवं तीव्र स्मरणशक्ति के स्वामी बौद्धिक कार्यों में रुचि रखने वाले होते हैं। काम-वासना इनमें ज्यादा पाई जाती है। ये धनवान, मेधावी, प्रियवक्ता और सामान्य सामाजिक व्यक्ति होते हैं।
मृगशिरा : इस नक्षत्र के जातक बचपन में रोगी, चंचल, चतुर, धैर्यवान, नकली वस्तुओं के निर्माता, स्वार्थी, अहंकारी और ईर्ष्यालु होते हैं। यात्रा-
भ्रमण में विशेष रुचि रहती है। इन्हें संतान और मित्रों से बहुत लाभ होता है।
आद्र्रा : इस नक्षत्र के जातक दीर्घायु, अल्पसंतति, दूसरों के धन पर मौज करने वाले, अहंकारी, पाप बुद्धि, कृतघ्न, निर्धन, प्रदर्शन-प्रिय और इंजीनियरिंग कार्यों में रुचि रखने वाले होते हैं।
पुनर्वसु : इस नक्षत्र के जातक सुखी, सज्जन, साहसी, लोकप्रिय, पुत्र-मित्रादि से युक्त, काव्यप्रेमी, माता-पिता के भक्त, कुशाग्र-बुद्धि और साहित्यानुरागी होते हैं। स्वार्थ, रोग तथा काम वासना से ग्रस्त होने पर भी इनका जीवन आनंदमय तथा धार्मिक रहता है।
पुष्य : इस नक्षत्र में जन्मे जातक शीघ्र क्रोधी, सुखी, स्वतंत्र, बुद्धिमान, धनवान, चतुर, कुटुम्ब-प्रेमी, कवि, लेखक, वकील, अध्ययन-अध्यापन में रुचि लेने वाले तथा प्रशासनिक कार्यों में दक्ष होते हैं।
आश्लेषा : इस नक्षत्र के जातक अति-भोजी तथा कामी होने पर भी औषधि व्यापार से धन संचय करते हैं।
मघा : इस नक्षत्र के जातक महत्वाकांक्षी, उद्यमी, समाज के अगुआ, धनवान और साहसी होते हैं। पिता के भक्त, वाहन तथा मृत्यु सुख से युक्त, स्त्रियों पर आसक्त तथा शारीरिक दृष्टि से कमजोर होने पर भी परिश्रम एवं चतुराई से ये लोग बड़े-बड़े कार्य संपादित कर लेते हैं।
पूर्वाफाल्गुनी : इस नक्षत्र के जातक मधुरभाषी, साहसी, चालाक, अपव्ययी, सुंदर व्यक्तित्व के स्वामी, स्त्री के प्रति विशेष झुकाव रखने वाले वाहन सुख, गाय, भैंस आदि से सम्पन्न, गंभीर, सुखी तथा विद्वानों में सम्मानित, भ्रमण, तीर्थाटन और संगीत में विशेष रुचि रखते हैं।
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