Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Mar, 2018 09:40 AM
वास्तु और ज्योतिष में अत्यंत घनिष्ठ संबंध हैं। एक तरह से दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों के बीच के इस संबंध को समझने के लिए वास्तु चक्र और ज्योतिष को जानना आवश्यक है। किसी जातक की जन्मकुंडली के विश्लेषण में उसके भवन या
वास्तु और ज्योतिष में अत्यंत घनिष्ठ संबंध हैं। एक तरह से दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों के बीच के इस संबंध को समझने के लिए वास्तु चक्र और ज्योतिष को जानना आवश्यक है। किसी जातक की जन्मकुंडली के विश्लेषण में उसके भवन या घर का वास्तु सहायक हो सकता है। उसी प्रकार किसी व्यक्ति के घर के वास्तु के विश्लेषण में उसकी जन्मकुंडली सहायक हो सकती है।
वास्तुशास्त्र एक विलक्षण शास्त्र है। इसके 81 पदों में 45 देवताओं का समावेश है और विदिशा समेत 8 दिशाओं को जोड़ कर 53 देवता होते हैं। इसी प्रकार, जन्मकुंडली में 12 भाव और 9 ग्रह होते हैं।
बिना ज्योतिष ज्ञान के वास्तु का प्रयोग अधूरा होता है इसलिए वास्तु शास्त्र का उपयोग करने से पूर्व ज्योतिष का भी ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। वास्तु में ज्योतिष का विशेष स्थान इसलिए है क्योंकि ज्योतिष के अभाव में ग्रहों के प्रकोप से हम बच नहीं सकते। हमारे ग्रहों की स्थिति क्या है, हमें उनके प्रकोप से बचने के लिए क्या उपाय करने चाहिएं, हमारा पहनावा, आभूषण, घर की दीवारों, वाहन, दरवाजे आदि का आकार और रंग कैसा होना चाहिए, इसका ज्ञान हमें ज्योतिष तथा वास्तु के द्वारा ही हो सकता है।
वास्तु से मतलब सिर्फ घर से ही नहीं बल्कि मनुष्य की संपूर्ण जीवनशैली से है हमें कैसे रहना चाहिए, किस दिशा में सिर करके सोना चाहिए, किस दिशा में बैठ कर खाना चाहिए आदि-आदि बहुत से प्रश्रों का ज्ञान होता है। यदि कोई परेशानी है तो उस समस्या का समाधान भी हम वास्तु और ज्योतिष के संयोग से जान सकते हैं।
भवन में प्रकाश की स्थिति प्रथम भाव अर्थात लग्र से समझनी चाहिए। यदि आपके घर में प्रकाश की स्थिति खराब है तो समझें कि मंगल की स्थिति शुभ नहीं है इसके लिए आप मंगल का उपाय करें प्रत्येक मंगलवार श्री हनुमान जी की प्रतिमा को भोग लगाकर सभी को प्रसाद दें और श्री हनुमान चालीसा का पाठ करने से ही प्रथम भाव के समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं।