Kundli Tv- सबसे अमीर भगवान के दर्शनों से पहले जानें ये राज़

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Jun, 2018 03:02 PM

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भारत वर्ष को मंदिरों का देश कहा जाता है। दक्षिण भारत को इसके केंद्रबिंदु की मान्यता प्राप्त है। जहां के भव्य विशाल कलात्मक ऐतिहासिक मंदिर अपनी लोकप्रियता को शताब्दियों से संजोए हैं। भारत का सबसे धनी मंदिर तिरुपति बाला जी श्री वेंकटेश्वर देव स्थानम...

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भारत वर्ष को मंदिरों का देश कहा जाता है। दक्षिण भारत को इसके केंद्रबिंदु की मान्यता प्राप्त है। जहां के भव्य विशाल कलात्मक ऐतिहासिक मंदिर अपनी लोकप्रियता को शताब्दियों से संजोए हैं। भारत का सबसे धनी मंदिर तिरुपति बाला जी श्री वेंकटेश्वर देव स्थानम के नाम से भी जाना जाता है। आंध्र प्रदेश में सात पहाड़ों के  ऊपर यह मंदिर स्थापित है। इसको सर्वाधिक धनाढ्य मंदिर की मान्यता प्राप्त है जहां करोड़ों का चढ़ावा नित्य आता है। विगत वर्ष सन् 2015 तक हीरे-चांदी के अलावा तिरुमाला-तिरुपति देव स्थानम मंदिर में 5.5 टन सोने का विशाल भंडार था। इसी से अनुमान लगा सकते हैं कि बाला जी में कुछ ऐसी अनोखी बातें हैं। भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों से सम्बद्ध मंदिर की जानकारी इस प्रकार है :

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तिरुपति बाला जी को भगवान विष्णु की मान्यता प्राप्त है। इन्हें प्रसन्न करने पर देवी लक्ष्मी की कृपा स्वयंमेव प्राप्त होती है। जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। दूसरी मान्यता है कि उसकी सारी मान्यताएं पूर्ण होती हैं जो व्यक्ति अपने मन से सभी पाप और बुराइयों को यहीं छोड़ जाता है। उसके सभी कष्ट और दुख देवी लक्ष्मी समाप्त कर देती है। इसीलिए यहां अपनी सभी अपवित्र भावनाएं और पापों के रूप में अपने सिर के बाल काटने में भी इतनी अधिक भीड़ होती है और उसके लिए लम्बी लाइन लगाकर स्त्री, पुरुष तथा बच्चे टिकट लेकर प्रवेश करते हैं। वहां पर बालों के विशाल अम्बार को देखकर विश्वास नहीं होता कि विदेशों से इसकी बिक्री होकर करोड़ों की राशि प्रतिवर्ष तिरुपति धर्मार्थ ट्रस्ट को प्राप्त होती है। सिर के बाल त्यागने पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी प्रसन्न हों और सदैव उन पर धन-धान्य की कृपा बनी रहे इसी कामना से भक्तगण अपने बालों का मुंडन कराते हैं।

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तुलसी दल भक्तों को नहीं दिया जाता: भगवान विष्णु एवं श्री कृष्ण को तुलसी बहुत प्रिय है, इसीलिए उनकी पूजा-अर्चना में तुलसी के पत्ते का अति महत्व है। वैसे सभी मंदिरों में विग्रह पर चढ़ाया गया तुलसी पत्र बाद में प्रसाद के रूप में भक्तों को प्रदान किया जाता है परन्तु यहां नित्य तुलसी पत्र चढ़ाया तो जाता है किंतु उसे प्रसाद रूप में नहीं दिया जाता। पूजा के बाद उस तुलसी पत्र को मंदिर परिसर के कुएं में डाल दिया जाता है।

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मूर्ति स्वयंमेव प्रकट हुई थी: मान्यता है कि मंदिर में स्थापित काले रंग की मूल मूर्ति है। जो किसी कारीगर द्वारा बनाई नहीं गई वर्ना स्वयं प्रगट हुई थी। 

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भगवान विष्णु को वेंकटेश्वर क्यों कहते हैं? : मेरु पर्वत के सप्त शिखरों पर निर्मित यह मंदिर भगवान शेषनाग का प्रतीक माना जाता है। इसको शेषांचल भी कहते हैं। पर्वत की सात चोटियां शेषनाग के फनों का प्रतीक कही जाती हैं। इस पर्वत की चोटियों को शेषाद्रि, नीलाद्रि, गरुड़ाद्रि, अंजनाद्रि, वृषटाद्रि नारायणाद्रि और वेंकटाद्रि कहा जाता है। इनमें से वेंकटाद्रि चोटी पर भगवान विष्णु विराजमान हैं। इसीलिए उन्हें वेंकटेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। हजारों भक्त दर्शनार्थियों के जय गोविंदा-जय गोविंदा के उद्घोष से यह पावन स्थल गुंजायमान होता है।

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यात्रा के नियम : तिरुपति बाला जी की यात्रा के कुछ नियम भी हैं। तिरुपति के दर्शन करने से पूर्व कपिल तीर्थ पर स्नान करके कपिलेश्वर के दर्शन करने चाहिएं। तत्पश्चात वेंकटांचल पर्वत पर जाकर बाला जी के दर्शन करें। वहां से आने के पश्चात पद्मावती के दर्शन की परम्परा पूर्व समय से चली आ रही है।


भाष्यकार रामानुजाचार्य को साक्षात दर्शन दिए- श्री विशिष्टाद्वैत दर्शन के भाष्यकार श्री रामानुजाचार्य एक सौ बीस वर्ष तक जीवित रहे। उन्होंने जीवन पर्यन्त भगवान विष्णु की सेवा के साथ ही श्री वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार भी किया। इसी के फलस्वरूप यहां की पवित्र भूमि पर भगवान विष्णु ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए थे। यहां तिरुपति बाला जी के मंदिर के अतिरिक्त अनेक मंदिर हैं उनमें आकाश गंगा, पापनाशक तीर्थ, बैकुंठ तीर्थ, जालावितीर्थ, तिरुच्चानूर मुख्य हैं। भक्तगण इन सभी पावन मंदिरों में भी दर्शन करने जाते हैं।

भगवान विष्णु के चरणों में क्यों रहती हैं लक्ष्मी

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