Kundli Tv- डूबते सूर्य से लें ये सीख, संवर जाएगी अापकी तकदीर

Edited By Jyoti,Updated: 15 Sep, 2018 04:30 PM

learn this lesson from the sunset your destiny will be change

आजकल के समय में भी एेसे बहुतद से लोग हैं अन्य लोगों की सेवा-भावना करने की इच्छा रखते हैं, लेकिन असल में उन्हें सेवा का मतलब पता ही नहीं होता। आज हम अपने स्वामी विवेकानंद के एक प्रेरक प्रंसग के जरिए आपको बताएंगे कि अगर आप सच्ची सेवा करने का भाव अपने...

ये नहीं देखा तो क्या देखा (देखें Video)
आजकल के समय में भी एेसे बहुतद से लोग हैं अन्य लोगों की सेवा-भावना करने की इच्छा रखते हैं, लेकिन असल में उन्हें सेवा का मतलब पता ही नहीं होता। आज हम अपने स्वामी विवेकानंद के एक प्रेरक प्रंसग के जरिए आपको बताएंगे कि अगर आप सच्ची सेवा करने का भाव अपने मन में रखते हैं, तो आपको आकाश में अस्त होने वाले सूर्य से प्रेरित होना चाहिए।


संध्या यानि शाम के समय पश्चिम आकाश में अस्त होने वाले सूर्य को देखें। बारह-बारह घंटों तक पृथ्वी को रोशनी देने के बाद भी वह निश्चित होकर विश्राम लेने जाना नहीं चाहते। वो सोचते हैं कि मैं चला जाऊंगा फिर सृष्टि को प्रकाश कौन देगा? उसे अंधकार से कौन उबारेगा? इस चिंता में देखो उनका मुख मंडल म्लीन हो गया है। इससे ये सीख मिलती है कि सच्चे सेवक की सेवा की भूख कभी शांत नहीं होती।


अब बात करते हैं चंद्र के पास खुद का प्रकाश नहीं है। फिर भी वह दूसरे का तेज उधार लेकर अपने आप को आलोकित करता हैं। इससे हमें ये ज्ञान मिलता है कि सच्चे सेवक को साधन का अभाव कभी नहीं खटकता।


इनकी तुलना में व्यक्ति की शक्ति बहुत थोड़ी है, इसलिए हमसे क्या सेवा हो सकेगी। क्या तुम ऐसा सोचते हो? नहीं, नहीं, ऐसा कभी मत सोचो। आकाश के तारों की ओर देखें। ब्रह्माण्ड की तुलना में कितने अल्प हैं, फिर भी यथाशक्ति सेवा करने- भूमण्डल को प्रकाशित करने केे लिए- लाखों की संख्या में प्रकट होते हैं और अमावस्या की अंधेरी रात में अनेकों का पथ-प्रदर्शन करते हैं।


थककर, ऊब कर सेवा क्षेत्र का त्याग करने का विचार कर रहे हो? तुम्हारे सामने बहने वाली इस सरिता को देखें। उद्गम से सागर तक संगम होने तक कभी मार्ग में वह रूकती है? 

‘सतत कार्यशीलता’ यही उसका मूल मंत्र हैं। मार्ग में आने वाले विघ्नों से वह डरती नहीं तो तुम क्यों साधारण संकटों और अवरोधों से घबराते हो? वह नदी कभी ऊंच-नीच का भाव जानती ही नहीं। मनुष्य मात्र ही नहीं, पशु-पक्षी या वनस्पति सबकी निरपेक्ष सेवा करना ही वह अपना धर्म समझती हैं। सेवक के लिए कौन ऊंच और कौन नीच?


‘इन अज्ञानी लोगों की क्या सेवा करें? इनका सुधरना असम्भव है’ ऐसा मत सोचो। देखो कीचड़ में यह कैसा सुंदर कमल खिला है? तुम भी अज्ञान के कीचड़ में कमल के समान खिलकर कीचड़ की सुरभि पैदा करो, सच्चे सेवक की यही कसौटी है।
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