Edited By Jyoti,Updated: 21 Jun, 2020 04:12 PM
बहुत ठंड पड़ रही थी। एक किसान रविवार के दिन पहाड़ी पर स्थित एक चर्च पर पहुंचा। चर्च का दरवाजा बंद था। किसान ऊंची आवाज में बोला, ‘‘अरे कोई है?’’
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बहुत ठंड पड़ रही थी। एक किसान रविवार के दिन पहाड़ी पर स्थित एक चर्च पर पहुंचा। चर्च का दरवाजा बंद था। किसान ऊंची आवाज में बोला, ‘‘अरे कोई है?’’
पादरी बाहर आया, वह किसान को देखकर कुछ हैरान था। पादरी बोला, ‘‘आज ठंड बहुत है, मुझे तो उम्मीद ही नहीं थी कि आज की प्रार्थना में कोई आएगा इसीलिए मैंने भी कोई तैयारी नहीं की, अब सिर्फ एक आदमी के लिए इतना सब कुछ करना ठीक रहेगा क्या?’’
किसान बोला, ‘‘साहब, मैं तो एक साधारण-सा किसान हूं, मैं रोज सुबह कबूतरों को दाना डालने जाता हूं और अगर एक कबूतर भी होता है तो मैं उसे दाना जरूर खिलाता हूं।’’
पादरी यह सुनकर थोड़ा शॄमदा हुआ और उसने मन ही मन ईश्वर से क्षमा मांगी और प्रार्थना में जुट गया, पहले उसने सारी टेबल-कुर्सियां
साफ कीं, हर एक टेबल पर ले जाकर बाइबल रखी, मोमबत्तियां जलाईं। प्रार्थना खत्म हुई, पादरी ने किसान को धन्यवाद दिया।
किसान कुछ नहीं बोला, इस पर पादरी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, प्रार्थना में कोई कमी रह गई क्या?’’
किसान बोला, ‘‘मैं क्या बताऊं, मैं तो एक साधारण किसान हूं, लेकिन जब मैं कबूतरों को दाना डालने जाता हूं और अगर एक ही कबूतर आता है तो मैं सारे दाने उसी को नहीं खिला देता।’’
पादरी को एक बार फिर एहसास हुआ कि सिर्फ अपना कर्तव्य निभाना ही जरूरी नहीं है बल्कि परिस्थिति के हिसाब से खुद को ढालना भी आवश्यक है।