Edited By Lata,Updated: 23 Jan, 2021 05:45 PM
मनुष्य एक विवेकशील जीव है। इस आशय को समझते हुए भी मनुष्य का मन भौतिकता के पीछे भागता है।
मनुष्य एक विवेकशील जीव है। इस आशय को समझते हुए भी मनुष्य का मन भौतिकता के पीछे भागता है। इसके पीछे कारण यही है कि मनुष्य तात्कालिक सुख चाहता है। उस तात्कालिक सुख से ही अपने-आप में संतुष्ट महसूस करता है। लेकिन वास्तविकता कुछ और है। चूंकि मनुष्य को अपना शरीर और मन स्वस्थ रखने के लिए भोजन, पानी इत्यादि की आवश्यकता है, वह उन चीजों के लिए अधीर होता है।
मनुष्य समझता है, क्या हानिकारक है और क्या लाभदायक है, फिर भी वह ऐसी चीजों के पीछे भागता है जो उसके लिए हानिकारक हैं। ऐसा इसलिए होता है कि जो चीजें सरल और सहज तरीके से मिलें और जिनमें क्षणिक सुख हो, वे उसे आकर्षित करती हैं। इसलिए अक्सर मनुष्य भौतिकता की ओर भागता है। मनुष्य के जीवन में तीन स्तर हैं- शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक। इन तीनों के बीच जो संतुलन बनाए रखता है वही स्थायी सुख का अनुभव कर सकता है। ज्ञानी व्यक्ति जानते हैं कि क्या उचित है और क्या अनुचित है, फिर भी अपने जन्मजात संस्कारों के चलते अनुचित वस्तुओं के पीछे भागते हैं। जब एक ज्ञानी व्यक्ति का मन भौतिकता के पीछे भागता है तब कौन मन को बलपूर्वक खींचकर सूक्ष्मता की ओर ले जा सकता है? केवल आध्यात्मिक पथ ही सही दिशा और पथ का निर्देशन कर सकता है।
आध्यात्मिक प्रगति के लिए यंत्र की आवश्यकता है और वह यंत्र क्या है? वह है मंत्र। याद रखना चाहिए कि मंत्र मनुष्य के मन के अंदर की जड़ता को दूर कर मन को इतना विकसित कर देता है कि वह आध्यात्मिक पथ की ओर अग्रसर होने लगता है। अगर मंत्र को नहीं अपनाएं तो आध्यात्मिक प्रगति संभव नहीं होगी। तब अस्तित्व का अर्थ नहीं रहेगा। इसलिए बुद्धिमान मनुष्य जितनी कम उम्र में हो सके अपना मंत्र ले लें।
मनुष्य जब दृढ़ता के साथ आध्यात्मिक क्षेत्र में चलता है तो आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति के साथ ही उसमें प्रेम, श्रद्धा, भाईचारा, साहस और सत्यनिष्ठा का जागरण होता है जिसका उपयोग समस्त संसार के मानसिक कल्याण के लिए होता है।