क्या सच में हनुमान जी हार गए थे एक तपस्वी से ?

Edited By Lata,Updated: 04 Jun, 2019 04:12 PM

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श्री राम के परम भक्त हनुमान जी को वीरों के वीर महावीर भी कहा जाता है। उन्होंने प्रभु राम के लिए बहुत सी मुसीबतों का डटकर सामना किया।

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श्री राम के परम भक्त हनुमान जी को वीरों के वीर महावीर भी कहा जाता है। उन्होंने प्रभु राम के लिए बहुत सी मुसीबतों का डटकर सामना किया। इसके साथ ही इन्हें सकंटमोचन हनुमान के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि ये अपने भक्तों के हर संकट को हर लेते हैं। रामायण में इनके हर एक काम को बहुत ही सुंदर तरीके से वर्णित किया है। उसमें बताया है कि राम जी के लिए बजरंगबली ने हर असंभव कार्य को भी संभव सिद्ध किया। इन्होंने अपने पराक्रम से शनिदेव, बाली, अर्जुन, भीम जैसे बड़े-बड़े वीरों को युद्ध में पराजित करके उनका अभिमान चूर-चूर किया। लेकिन क्या आपको पता है कि संकटमोचन हनुमान ने अपने जीवन काल में अभिमान वश एक ऐसा भी युद्ध लड़ा जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा और इतना ही नहीं उस युद्ध में हनुमान जी को हराने वाला कोई और नहीं बल्कि एक राम भक्त ही था। तो चलिए आगे जानते हैं उस कथा के बारे में विस्तार से। 
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पौराणिक कथा के अनुसार मच्छिंद्रनाथ नाम के बड़े तपस्वी थे। एक बार जब वे रामेश्वरम में आए तो राम जी का निर्मित सेतु देखकर वे भावविभोर हो गए और प्रभु राम की भक्ति में लीन होकर वे समुद्र में स्नान करने लगे। तभी वहां वानर वेश में उपस्थित हनुमान जी की नज़र उन पर पड़ी और उन्होंने मच्छिंद्रनाथ जी के शक्ति की परीक्षा लेनी चाही। इसलिए हनुमान जी ने अपनी लीला आरंभ की, जिससे वहां जोरों की बारिश होने लगी। ऐसे में वानर रूपी हनुमान जी उस बारिश से बचने के लिए एक पहाड़ पर वार कर गुफा बनाने की कोशिश का स्वांग करने लगे। दरअसल उनका उद्देश्य था कि मच्छिंद्रनाथ का ध्यान टूटे और उन पर नज़र पड़े और वहीं हुआ मच्छिंद्रनाथ ने तुरंत सामने पत्थर को तोड़ने की चेष्टा करते हुए उस वानर से कहा, ‘हे वानर तुम क्यों ऐसी मूर्खता कर रहे हो, जब प्यास लगती है तब कुआं नहीं खोदा जाता, इससे पहले ही तुम्हें अपने घर का प्रबंध कर लेना चाहिए था।’
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ये सुनते ही वानर रूपी हनुमान जी ने मच्छिंद्रनाथ से पूछा, आप कौन हैं? जिस पर मच्छिंद्रनाथ ने कहा, ‘मैं एक सिद्ध योगी हूं और मुझे मंत्र शक्ति प्राप्त है।’ 

जिस पर हनुमान जी ने मच्छिंद्रनाथ की शक्ति की परीक्षा लेने के उद्देश्य से कहा, वैसे तो प्रभु श्रीराम और महाबली हनुमान से श्रेष्ठ योद्धा इस संसार में कोई नहीं है, पर कुछ समय उनकी सेवा करने के कारण, उन्होंने प्रसन्न होकर अपनी शक्ति का एक प्रतिशत हिस्सा मुझे भी दिया है, ऐसे में अगर आप में इतनी शक्ति है और आप पहुंचे हुए सिद्ध योगी है तो मुझे युद्ध में हरा कर दिखाएं, तभी मैं आपके तपोबल को सार्थक मानूंगा।
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इतना सुनते ही मच्छिंद्रनाथ ने उस वानर की चुनौती स्वीकार कर ली और युद्ध की शुरुआत हो गई। जिसमें वानर रुपी हनुमान जी ने मच्छिंद्रनाथ पर एक-एक करके 7 बड़े पर्वत फेंके, पर इन पर्वतों को अपनी तरफ आते देख मच्छिंद्रनाथ ने अपनी मंत्र शक्ति का प्रयोग किया और उन सभी सातों पर्वतों को हवा में स्थिर कर उन्हें उनके मूल स्थान पर वापस भेज दिया। इतना देखते ही महाबली को क्रोध आया उन्होंने मच्छिंद्रनाथ पर फेंकने के लिए वहां उपस्थित सबसे बड़ा पर्वत अपने हाथ में उठा लिया। जिसे देखकर मच्छिंद्रनाथ ने समुंद्र के पानी की कुछ बूंदों को अपने हाथ में लेकर उसे वाताकर्षण मंत्र से सिद्ध कर उन पानी की बूंदों को हनुमान जी के ऊपर फेंक दिया। इन पानी की बूंदों का स्पर्श होते ही हनुमान का शरीर स्थिर हो गया और हलचल करने में भी असमर्थ हो गया, साथ ही उस मंत्र की शक्ति से कुछ क्षणों के लिए हनुमान जी की शक्ति छिन्न गई और ऐसे में वे उस पर्वत का भार न उठा पाने के कारण तड़पने लगे। तभी हनुमान जी का कष्ट देख उनके पिता वायुदेव वहां प्रगट हुए और मच्छिंद्रनाथ से हनुमान जी को क्षमा करने की प्रार्थना की। वायुदेव की प्रार्थना सुन मच्छिंद्रनाथ ने हनुमान जी को मुक्त कर दिया और हनुमान जी अपने वास्तविक रुप में आ गए। इसके बाद उन्होंने मच्छिंद्रनाथ से कहा, हे मच्छिंद्रनाथ आप तो स्वयं में नारायण के अवतार हैं, ये मैं भलीभांति जानता था, फिर भी मैं आपकी शक्ति की परीक्षा लेने की प्रयास कर बैठा, इसलिए आप मेरी इस भूल को माफ करें। स्थिति को समझते हुए मच्छिंद्रनाथ ने हनुमान जी को माफ़ किया। 

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