श्री जगन्नाथ के बीमार होने का राज़ जानकर आप अपने आंसू नहीं रोक पाएंगे

Edited By Lata,Updated: 18 Jun, 2019 12:34 PM

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ये बात तो सब जानते ही होंगे कि हर व्यक्ति अपने भगवान की बहुत सेवा करता है, ताकि उसे भगवान की कृपा मिल सके।

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ये बात तो सब जानते ही होंगे कि हर व्यक्ति अपने इष्ट की बहुत सेवा करता है, ताकि उसे उनकी कृपा मिल सके। लेकिन क्या किसी ने ये सुना है कि भगवान भी अपने भक्तों के सेवा करते हैं। ताकि उन्हें कभी कोई कष्ट न आए। जी हां, सुनने में थोड़ा अजीब लगता है कि भगवान ने अपने भक्त की सेवा करी, लेकिन ये बात सच है। क्योंकि भगवान कृष्ण अपने किसी भी भक्त को किसी दुख में नहीं देख सकते, इसलिए उन्हें भक्त वत्सल भगवान के नाम से भी जाना जाता है। आज हम बात करेंगे उनके प्रिय भक्त माधव दास के बारे में। जिनकी भक्ति के भाव को देखकर भगवान उनकी सेवा करने के लिए विवश हो गए। 
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जगन्नाथ पूरी में माधव दास नाम के एक भक्त रहा करते थे। माधव दास जी सांसारिक मोह माया से दूर रहते और केवल भगवान जगन्नाथ के भजन व दर्शन किया करते थे। माधव दास जी भगवान जगन्नाथ को अपना मित्र मानते थे और वे हमेशा जगन्नाथ जी से बाते करते,  उनके साथ खेलते थे। इस प्रकार माधव दास अपनी भक्ति में सदैव मस्त-मग्न रहते थे।

एक बार ऐसा समय आया जब माधव दास जी को अतिसार यानि उलटी-दस्त का रोग हो गया। जिसकी वजह से वह इतने दुर्बल हो गए कि उनसे उठा-बैठा जाना भी नहीं हो रहा था। उनकी इस हालत को देखकर आस-पास के लोग उनकी सेवा करने को आते लेकिन माधव दास उनसे कह देते कि मेरे तो एक जगन्नाथ ही हैं, वही मेरी रक्षा करेंगे। ऐसा करते-करते जब रोग बहुत बढ़ गया तब भगवान से भी अपने भक्त की हालत देखी नही गई और वे स्वंय सेवक बनकर उनके घर पहुंचे और माधव दास से कहने लगे क्या हम आपकी सेवा कर दें। क्योंकि माधव दास का रोग इतना बढ़ गया था कि उनको पता भी नही रहता, वे कब मल-मूत्र त्याग देते थे और वैसे ही वस्त्र गंदे पड़े रहते। अपने भक्त की यह दशा भगवान से देखी नहीं गई और वे स्वंय माधव दास के वस्त्रों को अपने हाथों से साफ करते, उसके पश्चात भगवान माधव दास के पूरे शरीर को साफ किया करते, उनको स्वच्छ रखते थे। कुछ समय बाद जब माधवदास की चेतना वापिस आई तो वे तुरंत ही भगवान जगन्नाथ जी को पहचान गए और कहने लगे मेरे प्रभु मेरी रक्षा के लिए स्वंय आ गए।
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माधव दास ने भगवान से पूछा- प्रभु, आप तो त्रिभुवन के स्वामी हो, तो फिर आप मेरी सेवा क्यों कर रहे हो। यदि आप चाहे तो मेरे रोग को पल मे ही दूर कर सकते हैं, तो प्रभु यह सब आपको नही करना पड़ता।

भगवान कहते हैं- हे माधव, मुझसे मेरे प्यारे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता, इसलिए मैनें यहां आकर तुम्हारी सेवा की और जो नियति में लिखा हो उसे भोगना तो अवश्य होता हैं, इसलिए मैंने तुम्हें ठीक नही किया, क्योंकि यदि इस रोग को मैं अभी ठीक कर देता तो तुम्हें यह भोगना के लिए पुन: जन्म लेना होता और मैं नहीं चाहता की मेरे भक्त को एक प्रारब्ध के कारण पुनः जन्म लेना पड़े। लेकिन यदि फिर भी तुम कहते हो तो मैं अपने भक्त की बात नहीं टाल सकता। हे माधव, अभी तुम्हारे प्रारब्ध के 15 दिन का रोग शेष बचा है, इसलिए अब यह 15 दिन का रोग मैं तुमसे ले लेता हूं। इस प्रकार भगवान ने 15 दिन के रोग को अपने ऊपर ले लिया और अपने भक्त की रक्षा करी।
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तब से भगवान जगन्नाथ जी साल मैं एक बार बीमार पड़ते हैं और इसलिए हर वर्ष उन्हें स्नान कराया जाता है। 15 दिन के लिए मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। भगवान को 56 भोग नहीं खिलाया जाता, बीमार होने के कारण परहेज किया जाता हैं। इन 15 दिनों में जगन्नाथ भगवान को काढ़ा पिला़या जाता है और उनकी सेवा की जाती है। जिससे वे जल्दी ठीक हो जाएं और अपने भक्तों के दर्शन दे सके। अपने भक्तों का जीवन सुखमयी बनाने के लिए भगवान ने रोग को अपने ऊपर ले लिया, ऐसे हैं हमारे भक्तवत्सल भगवान जगन्नाथ जी।

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