सुख की माया में खोए मन को स्वयं भगवान भी नहीं बचा सकते

Edited By ,Updated: 17 Oct, 2015 02:07 PM

lost in reverie of pleasure to the mind of god can not save himself

एक व्यक्ति घने जंगल में भागा जा रहा था। शाम का समय था। जंगल में घना अंधेरा था। उसे अंधेरे के कारण कुंआ दिखाई नहीं दिया और वह उसमें गिर गया। गिरते-गिरते उसके हाथ में कुएं पर झुके वृक्ष की एक डाल ....

एक व्यक्ति घने जंगल में भागा जा रहा था। शाम का समय था। जंगल में घना अंधेरा था। उसे अंधेरे के कारण कुंआ दिखाई नहीं दिया और वह उसमें गिर गया। गिरते-गिरते उसके हाथ में कुएं पर झुके वृक्ष की एक डाल आ गई। नीचे झांका, तो देखा कि कुएं में चार विशाल अजगर मुंह फाड़े ऊपर की तरफ ताक रहे थे। वह जिस डाल को पड़े हुए था, उसे भी दो चूहे कुतर रहे थे। इतने में एक हाथी कहीं से आया और वृक्ष के तने को हिलाने लगा।

वह सिहर उठा। ठीक ऊपर की शाखा पर मधुमक्खी का छत्ता था। हाथी के हिलाने से मक्खियां उड़ने लगीं। छत्ते से शहद की बूंदें टपकने लगीं। एक बूंद शहद उसके होंठों पर गिरा। उसने प्यास से सूख रही जीभ को होंठों पर फेरा। शहद की उस बूंद में अद्भुत मिठास थी। उसने मुंह ऊपर किया। कुछ क्षण बाद फिर शहद की बूंद मुंह पर टपकी। वह इतना मगन हो गया कि विपत्तियों को भूल ही गया। उस जंगल से शिव-पार्वती अपने वाहन से गुजर रहे थे। पार्वती ने शिव जी से उसे बचा लेने का अनुरोध किया। भगवान शिव ने उसके निकट जाते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं। मेरा हाथ पकड़ लो।’’

उस व्यक्ति ने कहा, ‘‘भगवान, एक बूंद शहद और चाट लूं तो चलूं।’’ एक बूंद...फिर एक बूंद। हर बूंद के बाद अगली बूंद की प्रतीक्षा। अंत में थक कर भगवान शिव चले गए। वह जिस जंगल से जा रहा था, वह जंगल है दुनिया और अंधेरा है अज्ञान। पेड़ की डाली आयु है। दिन-रात रूपी चूहे उसे कुतरते हैं। अभिमान का मदमस्त हाथी उस पेड़ को उखाड़ने में लगा हुआ है। शहद की बूंदें संसारिक सुख हैं, जिनके कारण मनुष्य आसपास के खतरे को अनदेखा करता है। सुख की माया में खोए मन को स्वयं भगवान भी नहीं बचा सकते।

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