Edited By Jyoti,Updated: 09 Jun, 2022 04:46 PM
यूं तो हमारे देश में भगवान शंकर के कई पवित्र स्थल है, जहां जाने से न केवल भक्त के मन को शांति प्राप्त होती है बल्कि विभिन्न प्रकार की मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है। आज हम बात करने जा रहे हैं काशी के बारे में।
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यूं तो हमारे देश में भगवान शंकर के कई पवित्र स्थल है, जहां जाने से न केवल भक्त के मन को शांति प्राप्त होती है बल्कि विभिन्न प्रकार की मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है। आज हम बात करने जा रहे हैं काशी के बारे में। जरा ठहरिए कहीं आप के दिमाग में भी काशी पढ़ने के बाद सबसे पहला काशी विश्वनाथ का ख्याल तो नहीं आया। अगर हां तो आपको बता दें हम इस काशी की बात नहीं करने जा रहे हैं। जी हां, आप में से बहुत से लोग इस सोच में पड़ गए होंगे कि आखिर काशी विश्वनाथ की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के काशी की। दरअसल हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में आदेगांव का बुलंद किला आज भी वर्षों से क्षेत्र की पहचान बना हुआ है। आपको बता दें कि अठारहवी सदी में बने इस किले के बीचों-बीच कालभैरव का मंदिर स्थापित है। जहां के लोगों की गहरी आस्था जुड़ी है और यही वजह है कि भक्त इस मंदिर को दूसरे काशी के तौर पर जानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि उस समय के मराठा शासक रघुजी भोंसले के दीवान खड़क भारतीय गोंसाई ने आदेगांव की दुर्गम पहाड़ी पर इस विशाल किले का निर्माण ईंट, पत्थर व चूना- मिट्टी से करवाया था।
जहां एक ओर किले की बाहरी दीवारें आज भी मजबूती के साथ अडिग होकर खड़ी हैं। सदियां बीत गईं लेकिन इन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ है। किले में भगवान काल भैरव का प्राचीन मंदिर है, जो लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित इस किले को देखने आज भी दूर-दूर से लोग आदेगांव पहुंचते हैं। किले में विराजमान कालभैरव, नागभैरव व बटुकभैरव का पूजन सदियों से होता आ रहा है और अगर बात की जाए भगवान भैरव के स्वरूप की तो बनारस की तरह यहां पर भी भगवान कालभैरव की खड़े स्वरूप में प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। किले की ऊंची दीवारें चारों ओर करीब तीन एकड़ में फैली हुई हैं। तो वहीं किले की बाहरी दीवार व बुर्ज को छोड़कर आंतरिक सभी संरचनाएं ध्वस्त हो चुकी हैं। इसका मुख्य द्वार पूर्व मुखी है जबकि दूसरा दरवाजा पश्चिम की तरफ खुलता है और ऐसा भी बताया जाता है कि किले के पिछले हिस्से में तालाब के नजदीक श्यामलता का विशाल वृक्ष है। कहा जाता है कि दुर्लभ श्यामलता के वृक्ष की पत्तियों में श्रीराधा कृष्ण का नाम लिखा दिखाई देता है। वृक्ष कब और किसने लगाया ये आज भी लोगों के लिए रहस्य की बात है। कहा जाता है कि आदेगांव किले के इतिहास की ज्यादा जानकारी पुरातत्व विभाग के पास भी मौजूद नहीं है।