माघ पूर्णिमा 2019 : आज पूरा हो जाएगा कल्पवास, जानें महत्व

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Feb, 2019 12:02 PM

magh purnima 2019

तीर्थराज प्रयाग में गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के मिलन स्थल पर कल्पवास की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। इसका आरंभ 21 जनवरी को पौष पूर्णिमा के साथ हुआ था। कुछ लोग मकर संक्रांति से भी कल्पवास आरंभ करते हैं।

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तीर्थराज प्रयाग में गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के मिलन स्थल पर कल्पवास की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। इसका आरंभ 21 जनवरी को पौष पूर्णिमा के साथ हुआ था। कुछ लोग मकर संक्रांति से भी कल्पवास आरंभ करते हैं। ऐसा माना जाता है कि प्रयाग में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होने वाले एक मास के कल्पवास से एक कल्प (ब्रह्मा का एक दिन) का पुण्य मिलता है।

PunjabKesariइस वर्ष अद्र्धकुंभ होने से इसका महत्व और ज्यादा बढ़ गया है। आदिकाल से चली आ रही इस परंपरा के महत्व की चर्चा वेदों से लेकर महाभारत और राम चरितमानस में अलग-अलग नामों से मिलती है। आज भी कल्पवास नई और पुरानी पीढ़ी के अध्यात्म की राह का एक पड़ाव है जिसके जरिए स्वनियंत्रण और आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है।

PunjabKesariबदलते समय के अनुरूप कल्पवास करने वालों के तौर-तरीके में कुछ बदलाव जरूर आए हैं लेकिन कल्पवास करने वालों की संख्या में कमी नहीं आई है।

PunjabKesariकल्पवास की शुरूआत के पहले दिन तुलसी और शालिग्राम की स्थापना और पूजन होता है। कल्पवासी अपने टैंट के बाहर जौ का बीज रोपित करता है। कल्पवास की समाप्ति पर इस पौधे को कल्पवासी अपने साथ ले जाता है जबकि तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है।

PunjabKesariकल्पवास के लिए वैसे तो उम्र की कोई बाध्यता नहीं है लेकिन माना जाता है कि संसारी मोह-माया से मुक्त और जिम्मेदारियों को पूरा कर चुके व्यक्ति को ही कल्पवास करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि जिम्मेदारियों से बंधे व्यक्ति के लिए आत्मनियंत्रण कठिन माना जाता है।

PunjabKesariमिथिलावासी मकर संक्रांति को काफी महत्व देते हैं इसलिए वह मकर संक्रांति से ही माघ मेले में पहुंच जाते हैं और मकर संक्रांति से माघी पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं। हालांकि ऐसे लोगों की संख्या कम होती है। पौष पूर्णिमा से कल्पवास आरंभ होता है और माघी पूर्णिमा के साथ संपन्न होता है। 

PunjabKesariएक माह तक चलने वाले कल्पवास के दौरान कल्पवासी को जमीन पर शयन करना होता है। इस दौरान फलाहार, एक समय का आहार या निराहार रहने का प्रावधान है। कल्पवास करने वाले व्यक्ति को नियमपूर्वक 3 समय गंगा स्नान और यथासंभव भजन-कीर्तन, प्रभु चर्चा और प्रभु लीला का दर्शन करना चाहिए।

PunjabKesariकल्पवास की शुरूआत करने के बाद इसे 12 वर्षों तक जारी रखने की परंपरा है।

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