Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Feb, 2020 07:27 AM
साल में लगभग 12 शिवरात्रि आती हैं लेकिन फाल्गुन महीने की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। इस मौके पर व्रत-उपवास और शिव पूजा का विधान है। अत: शुभ मुहूर्त में भगवान शिव की पूजा
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साल में लगभग 12 शिवरात्रि आती हैं लेकिन फाल्गुन महीने की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। इस मौके पर व्रत-उपवास और शिव पूजा का विधान है। अत: शुभ मुहूर्त में भगवान शिव की पूजा करने से मनचाहे लाभ प्राप्त होते हैं। 21 फरवरी शाम को 5 बजकर 20 मिनट से महाशिवरात्रि के पर्व का मुहूर्त शुरू होकर अगले दिन 22 फरवरी शनिवार शाम 7 बजकर 2 मिनट तक रहेगा।
शिव पूजा में न करें ये काम
इस दिन काले वस्त्र न पहनें।
भगवान शिव को सफेद फूल बहुत प्रिय हैं लेकिन केतकी का फूल सफेद होने के बावजूद भोलेनाथ की पूजा में नहीं चढ़ाना चाहिए।
भगवान शिव की पूजा करते समय शंख से जल अर्पित नहीं करना चाहिए।
भगवान शिव की पूजा में तुलसी का प्रयोग वर्जित है।
शिव की पूजा में तिल नहीं चढ़ाना। तिल भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ माना जाता है, इसलिए भगवान विष्णु को तिल अर्पित किया जाता है लेकिन शिव जी को नहीं चढ़ता।
शिव प्रतिमा पर नारियल चढ़ा सकते हैं, लेकिन नारियल का पानी नहीं।
हल्दी और कुमकुम उत्पत्ति के प्रतीक हैं, इसलिए पूजन में इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
चावल सफेद रंग के साबुत होने चाहिएं, टूटे हुए चावलों का पूजा में निषेध है।
फूल बासी एवं मुरझाए हुए न हों।
विभिन्न सामग्री से बने शिवलिंग का अलग महत्व
फूलों से बने शिवलिंग पूजन से भू-सम्पत्ति प्राप्त होती है।
अनाज से निर्मित शिवलिंग स्वास्थ्य एवं संतान प्रदायक है।
गुड़ व अन्न मिश्रित शिवलिंग पूजन से कृषि संबंधित समस्याएं दूर रहती हैं।
चांदी से निर्मित शिवलिंग धन-धान्य बढ़ाता है।
स्फटिक वालों से अभीष्ट फल प्राप्ति होती है।
पारद शिवलिंग अत्यंत महत्वपूर्ण है जो सर्व कामप्रद, मोक्षप्रद, शिव स्वरूप बनाने वाला, समस्त पापों का नाश करने वाला माना गया है।