Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Jul, 2020 09:54 AM
बात द्वापर युग में उस समय की है जब पांडव वनवास में थे। एक बार दुर्योधन को किसी शत्रु द्वारा बंदी बनाए जाने की खबर सुनकर युधिष्ठिर चिंतित हो गए। उन्होंने भीम से कहा, ‘‘हमें दुर्योधन की रक्षा करनी चाहिए।’’
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Mahabharat: बात द्वापर युग में उस समय की है जब पांडव वनवास में थे। एक बार दुर्योधन को किसी शत्रु द्वारा बंदी बनाए जाने की खबर सुनकर युधिष्ठिर चिंतित हो गए। उन्होंने भीम से कहा, ‘‘हमें दुर्योधन की रक्षा करनी चाहिए।’’
लेकिन भीम यह बात सुन कर नाराज हो गए। उन्होंने कहा, ‘‘आप उस व्यक्ति की रक्षा की बात कर रहे हैं जिसने हमारे साथ कई तरह से बुरा व्यवहार किया। द्रौपदी चीरहरण और फिर वनवास आप भूल गए?’’
इस तरह भीम ने दुर्योधन के बारे में काफी भला-बुरा कहा लेकिन युधिष्ठिर चुप रहे। अर्जुन भी वहां मौजूद थे। यही बात युधिष्ठिर ने अर्जुन से कही तो वह समझ गए और अपने गांडीव उठाकर दुर्योधन की रक्षा के लिए चले गए।
अर्जुन कुछ देर बाद आए और उन्होंने युधिष्ठिर से कहा, ‘‘शत्रु को पराजित कर दिया गया है और दुर्योधन अब
मुक्त है।’’
तब युधिष्ठिर ने हंसते हुए भीम से कहा, ‘‘भाई, कौरवों और पांडवों में भले ही आपस में बैर हो लेकिन संसार की दृष्टि से तो हम भाई-भाई एक ही हैं। भले ही वे 100 हैं और हम 5 तो हम मिलकर 105 हुए न।’’
‘‘ऐसे में हम में से किसी एक का भी अपमान 105 लोगों का अपमान है। यह बात तुम नहीं अर्जुन समझ गए।’’ यह बात सुनकर भीम युधिष्ठिर के सामने नतमस्तक हो गए।
शिक्षा : हम घर के अंदर कितने ही खून के प्यासे क्यों न हों, लेकिन जब कोई बाहरी व्यक्ति किसी अपने पर उंगली उठाता है या अपमान करता है तो अपना वैरभाव भुलाकर अपनी एकता प्रदर्शित करने से कभी पीछे मत रहें। दूसरों के सामने किसी अपने को छोटा मत पड़ने दें। एकता में बल होता है। यही इस कहानी की मूल शिक्षा है।