बच्चों के अंध प्रेम में 'धृतराष्ट्र' ने...

Edited By Jyoti,Updated: 28 May, 2020 01:15 PM

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बिना मेहनत जीवन निरर्थक और व्यर्थ है और मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती अर्थात वही जीवन में सफलता का परचम लहराते हैं। थोड़ा के मुड़कर इकर देखें तो दिल दहल जाता है

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बिना मेहनत जीवन निरर्थक और व्यर्थ है और मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती अर्थात वही जीवन में सफलता का परचम लहराते हैं। थोड़ा के मुड़कर इकर देखें तो दिल दहल जाता है यह सोचकर कि हमार पूर्वजों ने कैसे दूसरों की खातिर मेहनत की जिसे 'बगार' का नाम भी दिया जाता है। आज के इस आरामदायक और मशीनी माहौल में तो लोग इतने आलसी होते जा रहे हैं कि अपने काम के लिए भी दूसरों पर निर्भर हैं और विद्यार्थी जीवन में तो यह सोच भी आत्मघाती है। आप बड़े और प्रसिद्ध स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं या किसी सामान्य स्कूल में, यह आपके जीवन में उतना महत्वपूर्ण नहीं, जितना आपकी लगन और मेहनत है। द्रोणाचार्य, कौरवों और पांडवों दोनों के ही गुरु थे, पर अपनी लगन और मेहनत से अर्जुन ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन पाए क्योंकि अर्जुन ने अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया था और उसे पाने के लिए उन्होंने मेहनत भी की। क्‍या आज विद्यार्थी अपना लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं ? जो कर लेते हैं वे मंजिल पा लेते हैं।
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सच्ची लगन का ऐतिहासिक उदाहरण या अपवाद तो एकलव्य हैं जिन्हें न गुरु का सान्निध्य और आशीर्वाद मिला और न ही वे गुर ही, जिससे वह सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन पाते । बस उनकी अपनी लगन और मेहनत ने ही उन्हें यह दर्जा दिलाया। अगर सीखने वाले में सच्ची लगन है तो कोई भी परिस्थिति उसके रास्ते का रोड़ा नहीं बन सकती।

अगर दो-तीन दशक के अंतराल में शिक्षा में आए परिवर्तन पर नजर डालें, तो बहुत अंतर आ गया है। शिक्षा को लेकर पहले माता-पिता इतने जागरूक नहीं थे और न ही इतने कोचिग सैंटर होते थे, पर आज माता-पिता अपने बच्चों की शिक्षा के लिए दिन-रात एक कर रहे हैं। हर सुविधा बच्चों को दे रहे हैं ताकि वे शिक्षित होकर अपने जीवन को संवार पाएं, पर देखने में दो तरह के उदाहरण सामने आते हैं।

कुछ बच्चे तो अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरे उतरने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सुख-सुविधा मिलने पर कुछ बच्चे बुरी संगतिऔर आदतों में पड़ कर अपना जीवन तो बर्बाद कर ही रहे हैं, साथ ही माता-पिता की उम्मीदों और मेहनत की कमाई को भी मिट्टी में मिला रहे हैं । हम बच्चे के सामर्थ्य से ज्यादा उससे उम्मीद करते हैं, जिसे पूरा कर पाना उसके लिए असंभव होता है। फिर वह न अपना जीवन सहजता से जी पाता है, न माता-पिता की इच्छा ही पूरी कर पाता है और खो जाता है कभी-कभी गुमनामियों के अंधेरों में।
 

हम अपनी इच्छाओं का बोझ अपने बच्चों पर न लादें बल्कि उन्हें अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ बेहतर करने के लिए प्रेरित करें । बच्चों को भी अपने गुणों को निखारने में हमेशा तत्पर रहना चाहिए। इस श्लोक में बच्चों को कई अवगुणों से दूर रहने की हिदायतायत दी गई है...

“आलस्यं मदमोहों च चापल॑ गोएछिरेव च रहें
स्तब्धता चाथिमानित्वं तथात्यागरित्वमेव च।
एते वे सप्त दोषा: स्थु: सदा विद्यार्थिना मता: !
PunjabKesari, Mahabharata, धृतराष्ट्र, महाभारत, Dhritarashtra, धृतराष्ट्र, Dharmik katha, Religious Concept in hindi, Dant Katha in hind, Mahabharata Interesting Story, Punjab kesari, Dharmअर्थात्‌ आलस्य, मद्यपान, भ्रम, अज्ञान, चंचलता, मंडली में परिहास, उहंडता, अभिमान और स्वार्थ विद्यार्थी के लिए सात दोष माने गए हैं। विद्या के इच्छुक व्यक्ति में उपर्युक्त सात दोष नहीं होने चाहिएं। विद्यार्थी जीवन साधना और तपस्या का जीवन है।

मेहनत ही सफलता पाने का एकमात्र और सीधा रास्ता है।

“उद्यमेन हि सिद्यन्ति कार्याणि न मनोरथे:
न हि सुत्रस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे गया:
अर्थात मेहनत से ही सभी कार्य पूरे होते हैं, सिर्फ इच्छा से नहीं। जैसे सोए हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं प्रवेश नहीं करता बल्कि शेर को स्वयं प्रयास करना पड़ता है। उसी प्रकार विद्यार्थी को स्वयं ही मेहनत करनी पड़ती है, तभी वह अपने भाग्य को संवार सकता है।

“काक चेष्टा, बको ध्यान श्वान निंद्रा तथेव च
अल्पहारी, ग॒हत्यागी पंच विद्यार्थी लक्षणम। 

अर्थात्‌ एक आदर्श विद्यार्थी के पांच मुख्य लक्षण हैं। कौए की तरह उसकी चेष्टा होनी चाहिए और बगुले की तरह ध्यान होना चाहिए। कुत्ते की तरह उसे नींद लेनी चाहिए और गृहत्यागी अर्थात सुखों से दूर रहने वाला ही विद्या को ग्रहण कर सकता है।

अब प्रश्न यह भी सामने खड़ा होता है कि क्या सच में विद्यार्थी इस मल्टीमीडिया के माहौल में इन गुणों के साथ विद्या अर्जित कर सकता है या नहीं ? यह प्रश्न अपने आप में बहुत विचारणीय है। आज इतनी सुख-सुविधाओं के बीच बच्चों की परवरिश हो रही है, उन्हें जरूरत से ज्यादा लाड़-प्यार के साथ पाला जा रहा है और माता- पिता तो मानो धृतराष्ट्र ही बन गए हैं, अपने बच्चों के अंधप्रेम में । हम देश के लिए पता नहीं कैसी कौम तैयार कर रहे हैं जिनका संघर्ष से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं, व्यावहारिक जीवन का जिनको कोई ज्ञान नहीं, बस वे एक ऐसे रोबोट बनते जा रहे हैं जिन्हें मात्र किताबी ज्ञान है प्रश्नोत्तर उन्हें आते हैं पर जीवन की छोटी-सी समस्या देखकर वे घबरा जाते हैं।
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आज घर-घर में बच्चों के पास मोबाइल हैं। हां, उसमें ज्ञान का भंडार है, पर बहुत-सी चीजें ऐसी हैं, व्हाट्सऐप फेसबुक, टिकटॉक और इंस्टाग्राम जो माचिस को तीली का काम करते हैं और बस एक छोटी-सी चिगारी काफी है भविष्य रूपी महल को जलाने के लिए।

न सिर्फ विद्यार्थियों को अपितु माता-पिता को भी इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि विद्यार्थी अपना अनमोल समय इन व्यर्थ की चीजों पर न गवाएं क्‍योंकि जिसने इस काल में मेहनत कर ली उसका जीवन सफल और जिसने इस काल में सुख की कामना की उसका जीवन सफल नहीं हो पाता। -मीना चंदेल

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