MahaKumbh 2021: कल्पवास के दौरान देवता करते हैं मनुष्य रूप में हरि कीर्तन

Edited By Jyoti,Updated: 24 Feb, 2021 01:15 PM

mahakumbh 2021

प्रत्येक 12 साल के बाद देश में स्थित चार पावन स्थलों पर कुंभ मेले का भव्य आयोजन किया जाता है। जिसके बारे में हम आपको अपनी वेबसाइट के माध्यम से बता चुके हैं।

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प्रत्येक 12 साल के बाद देश में स्थित चार पावन स्थलों पर कुंभ मेले का भव्य आयोजन किया जाता है। जिसके बारे में हम आपको अपनी वेबसाइट के माध्यम से बता चुके हैं। ये मेला न केवल भारत देश के लोग देखने दूर-दूर से आते हैं, बल्कि अन्य देशों के लोग भी इस भव्य व धार्मिक मेले में आते हैं और पावन तीर्थ नदियों में स्नान करते हैं। तो वहीं ये धार्मिक मान्यताएं भी प्रचलित हैं कि महाकुंभ के दौरान स्वर्ग लोग से सभी देवता मनुष्य पूप में आकर हरि कीर्तन करते हैं।  

हिंदू धर्म के मुख्य ग्रंथों में एक पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास की पूर्ण व्यवस्था का वर्णन किया है कि कल्पवासी को 21 नियमों का पालन करना होता है।

ये हैं वो 21 नियम- सत्यवचन, अहिंसा, इन्द्रियों का शमन, सभी प्राणियों पर दयाभाव, ब्रह्मचर्य का पालन, व्यसनों का त्याग, सूर्योदय से पूर्व शैय्या-त्याग, नित्य तीन बार सुरसरि-स्नान, त्रिकालसंध्या, पितरों का पिण्डदान, यथा-शक्ति दान, अन्तर्मुखी जप, सत्संग, क्षेत्र संन्यास अर्थात संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, परनिंदा त्याग, साधु सन्यासियों की सेवा, जप एवं संकीर्तन, एक समय भोजन, भूमि शयन, अग्नि सेवन न करवाना, जिनमें से ब्रह्मचर्य, व्रत एवं उपवास, देव पूजन, सत्संग, दान का विशेष महत्व है।

धार्मिक कथाओं के अनुसार क्षीरसागर मंथन के बाद अमृत कलश निकलने पर देव और दानवों में युद्ध हुआ था। जिस दौरान धरती पर चार स्थानों पर हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक एवं उज्जैन पर अमृत की बूंदें टपकी उन स्थानों पर कलियुग में कुंभ का आयोजन होता है।

ब्रह्मलीन स्वामी सदानंद परमहंस के अनुसार मेले से ज्यादा आध्यात्मिक महत्व उससे पूर्व कुंभ के कल्पवास का होता है। पावन तीर्थस्थलों पर होने वाले कुंभ में कल्पवास नगरी में पूरे देश सेउच्च कोटि के साधक सिद्ध साधना के लिए पहुंचते हैं।

क्योंकि कहा जाता है कि इस दौरान देवता मनुष्य रूप में कल्पवास नगरी में उपस्थित होते हैं। इस संदर्भ में यह भी कहा जाता है कि कल्पवास में कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए कि जो साधक आपको साधारण दिख रहा है वह ऐसा ही है। संभव है कि कोई देवता छद्म वेश में साधना करने आया हो।

बताया जाता है कि स्वामी सदानंद जी स्वयं अध्यात्मिक स्तर पर परमहंस के पद पर सुशोभित थे, फिर भी वह कल्पवास में साधना करने का लोभ संवरण नहीं कर पाते थे।

 

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