Kundli Tv- इस मंदिर में सूर्य की किरणें दिखने पर मनाया जाता है उत्सव

Edited By Jyoti,Updated: 04 Aug, 2018 02:20 PM

mahalakshmi temple in kolhapur where sun rays are come only 3 times in year

इस जगत में हर किसी के दिन की शुरूआत सूर्य देव की किरणों से होती हैं। कहा जाता है कि जिस पर भी सूर्य देव की किरणें पड़ती है, उसका जीवन उज्जवल हो उठता है। पृथ्वी पर शायद ही एेसा कोई जीव हो जिस पर सूरज की रोशनी न पड़ती हो।

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इस जगत में हर किसी के दिन की शुरूआत सूर्य देव की किरणों से होती हैं। कहा जाता है कि जिस पर भी सूर्य देव की किरणें पड़ती है, उसका जीवन उज्जवल हो उठता है। पृथ्वी पर शायद ही एेसा कोई जीव हो जिस पर सूरज की रोशनी न पड़ती हो। लेकिन हम आज आपको एक एेसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां सूर्य की किरणें केवल 1 वर्ष में 3 बार ही पड़ती है। जी हां, आपको यह हैरानी होगी लेकिन यह सच है कोल्हापुर की महालक्ष्मी के धाम में सूर्य की किरणें वर्ष में सिर्फ 3 दिन आती हैं और मां के चरणों को चूमती हैं। इस चमत्कार के इन दिनों पर भक्त किरणोंत्सव भी मनाते हैं। 

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भक्त इसे महालक्ष्मी का चमत्कार कहते हैं। मान्यता के अनुसार मंदिर में होने वाला यह चमत्कार केवल साल में एक बार होता है। साल के लगातार 3 दिन सूर्य की किरणें देवी लक्ष्मी के चरण स्पर्श करती है। 31 जनवरी से 2 फरवरी तक मां लक्ष्मी के इस मंदिर में सबसे पहले सूर्य देव देवी लक्ष्मी की वंदना करने आते हैं। कहते हैं कि मां लक्ष्मी के चरण स्पर्श करके सूर्य देव और निख़र आते हैं और इनकी इस अद्भुत रोशनी में सारे भक्त रोशन हो जाते हैं। 


देवी लक्ष्मी का यह मंदिर महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थापित है, जहां मां अंबा बाई के नाम से जानी जाती है। परिसर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही मां के अद्भुत रूप के दर्शन होते हैं। कहा जाता है सूर्य की यह किरणें हर मुश्किल का सीना चीर गृभग्रह में मां के चरणों पर आती है। 

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मान्यता है कि यहा मां के दर्शन करने वालों पर तो माता की कृपा होती ही है, वहीं साथ ही इन दिनों के गवाह बनने वाले लोगों की भी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। यहां की लोक मान्यता के अनुसार पहले दिन सूर्य की किरणें देवी के चरणों पर, दूसरे दिन छाती पर और तीसरे दिन पूर्ण प्रतिमा को स्पर्श करती है। 


देवी यहां सोलह श्रृगांर में विराजमान हैं और उनके दाएं बाएं मां काली और मां सरस्वती भी विराजमान हैं। कहते हैं कि सृष्टि के पालन, निर्माण और विनाश करता यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का तेज इसमें समाया हुआ है। यहां विष्णु के रूप में महालक्ष्मी, ब्रह्मा के रूप में मा सरस्वती और महाकाल के रूप में मां काली विराजमान हैं। इसलिए कहा जाता है कि यहां पर ज्ञान पारण के साथ-साथ विनाश करने तक की शक्ति का अनुभव किया जा सकता है।

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पद्मपुराण के अनुसार महालक्ष्मी का यह शक्ति पीठ युगों युगों से अपने आप में चमत्कार दिखाता आ रहा है और भक्तों पर अपना आशीष लुटा रहा है। हर शुक्रवार, नवरात्रि और अष्टमी को यहां भारी संख्या में भक्तों भीड़ देखने को मिलती हैं। 


मान्यता है कि इस मंदिर में मां सती का नेत्र गिरा था। कहा जाता है कि जो भी यहां मां के दर्शन कर उनका अभिषेक कर लेता है मां उसे सिद्धि व शक्ति से मालामाल कर देती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर का निर्माण असुरों ने किया था। जिनका नाम था जय और विजय। कहते हैं कि मां से अभय दान का वरदान पाने के लिए उन्होंने एक ही रात में मां के इस मंदिर का निर्माण करवाया था। 

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पद्मपुराण, भगवत पुराण, हरिवंश पुराण, स्कंद पुराण और मारकंडे पुराण सभी में इस मंदिर का जिक्र मिलता है। माना जाता है कि इस मंदिर की महिमा उत्तर काशी से कम नहीं है। एक किवंदती के अनुसार इस गांव में कोल्हासुर नामक का एक राक्षस अपना तांडव मचाए हुए था और मां महालक्ष्मी तपस्पा कर रही थी। जब उससे अवगत करने के लिए मां बाहर निकली तो राक्षस को पता चला कि माता के वध से उसे मोक्ष की प्राप्ति होने वाली है तो उसने मां से वरदान मांगा कि मुझे अमरता का वरदान दो। तभी मां ने प्रसन्न होकर उसे कहा कि आज के बाद यह नगरी कोल्हापुर के नाम से जानी जाएगी। मान्यता है कि भगवान पशुराम की इस नगरी में जहां मां विराजती हैं, वहां भोलेनाथ और भगवान विष्णु स्वयं पधारे थे। तभी तो कहते हैं पृथ्वी पर स्थापित इस शक्ति पीठ का महत्व किसी मोक्ष पीठ से कम नहीं। 


मां कोल्हापुर में कैसे आई
पौराणिक कथा के अनुसार जब बालाजी ने पद्मवती से दूसरा विवाह किया तो मां लक्ष्मी रूठ कर यहां तपस्पा करने चली आई। जिससे बाला जी कंगाल हो गए। इसलिए आज भी बाला जी के मंदिर से एक शाॅल लाकर महालक्ष्मी को चढ़ाई जाती है। मां की पूजा का प्रमुख विधान है मां की गोदभराई। यहां सुहागिन महिलाएं मां की गोद भरती हैं, जिसमें उन्हें चूड़ी, साड़ी और सिंदूर भेंट किया जाता है। यह रस्म सुबह 5 बजे होने वाली आरती के बाद शुरू होती है जिसके बाद भक्त मां का अभिषेक भी करते हैं।

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