Mahashivratri 2019: आपने भी रखा है आज व्रत तो ये पढ़ना न भूलें

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Mar, 2019 01:36 PM

mahashivratri 2019 do not forget to read it

भगवान शंकर से एक बार पार्वती जी ने पूछा कि संसार में ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ एवं सरल व्रत पूजन है जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते  हैं, तब भगवान शिव ने कहा शिवरात्रि का व्रत रख कर ऐसी कृपा सहज ही प्राप्त की जा सकती है।

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भगवान शंकर से एक बार पार्वती जी ने पूछा कि संसार में ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ एवं सरल व्रत पूजन है जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते  हैं, तब भगवान शिव ने कहा शिवरात्रि का व्रत रख कर ऐसी कृपा सहज ही प्राप्त की जा सकती है। भगवान शंकर की कृपा प्राप्त करने का सबसे सुगम एवं सरल साधन है महाशिवरात्रि का व्रत। शिव शीघ्र प्रसन्न होकर मन वांछित वरदान देते हैं।

महाशिवरात्रि पर करें ये खास उपाय, अपार दौलत के साथ मिलेगा भगवान शंकर जैसा पति

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व्रत का विधान : प्रात:काल स्नान ध्यान आदि से निवृत्त होकर व्रत रखना चाहिए। पत्र-पुष्प तथा स्वच्छ सुंदर वस्त्रों से मंडप तैयार करके सर्वतोभद्र की वेदी पर कलश की स्थापना के साथ गौरीशंकर की स्वर्ण एवं नंदी की रजत की मूर्ति रखनी चाहिए। अगर यह संभव न हो तो शुद्ध मिट्टी से शिवलिंग बना लेना चाहिए। कलश में जल भर कर रोली, मौली, चावल, सुपारी, लौंग इलायची, चंदन, दूध, दही, घी, शहद, कमलगट्टे, धतूरे, बिल्व पत्र आदि का प्रसाद भगवान शिव को अर्पित कर पूजा करें। रात्रि को जागरण करके ब्राह्मणों से शिव स्तुति अथवा रुद्राभिषेक कराना चाहिए। जागरण में शिवजी की चार आरती का विधान है। इस अवसर पर अगर शिव पुराण का पाठ किया जाए तो वह कल्याणकारी होता है।PunjabKesariदूसरे दिन प्रात: जौ, तिल, खीर, बेलपत्रों से हवन करके ब्राह्मणों को भोजन करवाकर, व्रत का पाठ करना चाहिए। भगवान शंकर पर चढ़ाया नैवेद्य खाना निषिद्ध है। इसके निवारण के लिए शिव की मूर्ति के पास शालिग्राम रखना अनिवार्य है। अगर शिव मूर्ति के पास शालिग्राम रखा है तो नैवेद्य खाने का कोई दोष नहीं लगता।

PunjabKesariव्रत कथा
एक गांव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या कर वह अपने परिवार का पालन पोषण करता था। उस पर एक साहूकार का ऋण था मगर वह ऋण समय पर न चुका पाया। क्रोध में आकर साहूकार ने शिकारी को शिव मठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि का दिन था। शिकारी ध्यान मग्न होकर शिव की बातें सुनता रहा। अगले दिन शिकारी साहूकार को ऋण देने की बात कर छूट गया। 

PunjabKesariशिकारी शिकार के लिए जंगल की ओर गया। भूख प्यास से व्याकुल शिकारी एक तालाब के किनारे बेलपत्र के वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेलपत्र के वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बेलपत्रों से ढंका था। उसको इसकी जानकारी नहीं थी। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं संयोगवश वे शिवलिंग पर गिर पड़ीं। इस प्रकार भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। भूखा प्यासा शिकार की प्रतीक्षा करने लगा। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी जैसे ही उसका शिकार करने लगा तो मृगी ने कहा मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। यदि मुझे मारते हो तो एक साथ दो हत्याएं होंगी। यह ठीक नहीं। मुझे थोड़ा समय दो। बच्चे को जन्म देकर मैं शीघ्र तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगी। तब तुम मुझे मार लेना।

PunjabKesariशिकारी ने उसे जाने दिया। कुछ समय पश्चात एक और मृगी उधर से निकली। फिर शिकारी ने धनुष पर बाण चढ़ाया। शिकारी को देखकर मृगी ने नम्रतापूर्वक उससे कहा मैं अपने प्रिय की खोज में भटक गई हूं। मैं वायदा करती हूं कि मैं अपने प्रिय से मिलकर शीघ्र लौट आऊंगी। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को छोड़कर वह परेशान हो गया। रात्रि का अंतिम पहर बीत रहा था तभी एक मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्ण अवसर था। तभी मृगी बोली, ‘‘शिकारी मैं ये बच्चे इनके पिता को देकर लौट आऊंगी इस समय तुम मुझे मत मारो जाने दो। जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है वैसे ही मुझे ममता सता रही है। इसीलिए बच्चों के नाम पर मैं थोड़ा जीवन मांग रही हूं।’’

शिकारी को उस पर दया आ गयी और उसे जाने दिया। शिकार की तलाश में शिकारी बेलपत्र के पत्ते तोड़कर नीचे फैंकता रहा। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी ओर आया। शिकारी ने सोचा वह उसका शिकार अवश्य करेगा तभी मृग बोला हे पारथी आपने मुझसे पूर्व तीन मृगियों एवं उनके बच्चों को मार डाला है तो मुझे मारने में देर मत करो ताकि मुझे उनके वियोग में एक पल भी दुख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं यदि तुमने उन्हें जीवन दान दिया है तो मुझे भी कुछ पल का जीवनदान दो। मैं उनसे मिलकर आपके पास आता हूं। मृग की बात सुनते ही शिकारी के मन में रात्रि का सारा घटनाक्रम घूम गया। उपवास रात्रि जागरण, शिवलिंग पर बेलपत्र चढऩे से शिकारी का हृदय निर्मल हो गया। अभी शिकारी पश्चाताप से उबर भी नहीं पाया था। वह मृग सपरिवार शिकारी के पास पहुंच गया। शिकारी उसी क्षण अपने हृदय से जीव हिंसा की भावना त्याग कोमल एवं दयालु बन गया। मृग एवं शिकारी को मोक्ष प्राप्त हुआ।

महाशिवरात्रि पर इस 1 उपाय को करने से दूर होगा कालसर्प दोष

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