Mahashivratri 2019 : ये एक काम दिला सकता है चार पहर की पूजा का संपूर्ण फल

Edited By Jyoti,Updated: 02 Mar, 2019 01:41 PM

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भोलेबाबा के भक्तों का इंतज़ार खत्म होने को आया है। 4 मार्च यानि आने वाले सोमवार को भगवान शंकर का सबसे प्रिय दिन है यानि महाशिवरात्रि।

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भोलेबाबा के भक्तों का इंतज़ार खत्म होने को आया है। 4 मार्च यानि आने वाले सोमवार को भगवान शंकर का सबसे प्रिय दिन है यानि महाशिवरात्रि। मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शंकर और गौरी अर्थात माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसी खुशी में देवताओं ने मिलकर इस दिन को बहुत धूम-धाम से मनाया था। कहते हैं चूंकि ये दिन भोलेनाथ को अधिक प्रिय है, यही कारण है कि ये इनके भक्तों को अधिक प्रिय है। 
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इस दिन हर कोई इन्हें खुश करने के लिए अनेकों प्रकार से इनकी पूजा-अर्चना करता है तो कोई इनका विभिन्न तरहों से अभिषेक  करता है। तो वहीं लोग इस दिन चार पहगर की पूजा भी करते हैं। परंतु कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो किसी न किसी कारण वश इस दिन भगवान शंकर की पूजा करने में असमर्थ रह जाते हैं, जिस वजह से वे इस दिन महादेव का आशीर्वाद नहीं पा पाते।

लेकिन हम आपको बता दें कि आपको इस बात से परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि हम आपको इनके उस पाठ के बारे में बताने जा रहे हैं जिसको पढ़ने से आपको चार पहर की पूजा का फल मिल सकता है।
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जी हां, ज्योतिष के अनुसार अगर जातक किसी कारणवश देवों के देव महादेव की पूजा-अर्चना न कर पाए तो उसे 108 बार शिव चालीसा का पाठ कर लेना चाहिए। माना जाता है कि अगर जातक शिव चालीसा का पाठ पूरी श्रद्धा और सच्चे मन से करता है तो भोलेनाथ बहुत प्रसन्न होते हैं। तो अगर आप भी चाहते हैं इस साल की महाशिवरात्रि पर भगवान शंकर आपर पर भर-भर के अपनी कृपा बरसाएं तो इस दिन शिव चालीसा का पाठ करना न भूलें। 
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बता दें कि शिव पुराण के साथ-साथ हिंदू धर्म के अन्य ग्रंथों में कहा गया है कि शिव-शक्ति का संयोग ही परमात्मा है। शिव शंकर की जो पराशक्ति है उससे चित्‌ शक्ति प्रकट होती है। इसी
चित्‌ शक्ति से आनंद शक्ति का प्रादुर्भाव और इच्छाशक्ति का उद्भव हुआ है। शिव चालीसा ऐसे आनंद की अनुभूति दिलाने वाले शक्तिशाली पाठ माना गया है।

शिव चालीसा-
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।।दोहा।।

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥

कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥

मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥

कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥दोहा॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥ 
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