Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Apr, 2019 01:11 PM
भगवान महावीर स्वामी अहिंसा व अपरिग्रह की साक्षात मूरत थे। वह सभी के साथ समान भाव और किसी को भी कोई दुख नहीं देना चाहते थे। पंचशील सिद्धांत के प्रवर्तक व जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे।
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भगवान महावीर स्वामी अहिंसा व अपरिग्रह की साक्षात मूरत थे। वह सभी के साथ समान भाव और किसी को भी कोई दुख नहीं देना चाहते थे। पंचशील सिद्धांत के प्रवर्तक व जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। जिस युग में हिंसा, पशुबलि, जात-पात के भेदभाव का बोलबाला था उस युग में भगवान महावीर ने जन्म लिया था। भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग, संयम, प्रेम, करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था। भगवान महावीर ने चतुर्विध संघ की स्थापना की।
देश के विभिन्न भागों में भ्रमण कर भगवान महावीर ने अपना पवित्र संदेश फैलाया। उन्होंने दुनिया को पंचशील के सिद्धांत बताए, ये सिद्धांत सत्य, अपरिग्रह, अस्लेय, अहिंसा और क्षमा हैं। उन्होंने दुनिया को सत्य व अहिंसा जैसे खास उपदेशों के माध्यम से सही राह दिखाने की कोशिश की। भगवान महावीर स्वामी ने हमें अहिंसा का पालन करते हुए सत्य के पक्ष में रहते हुए किसी के हक को मारे बिना, किसी को सताए बिना, लोभ-लालच किए बिना, आकुल-व्याकुल हुए बिना मोक्ष पद पाने की ओर कदम बढ़ाकर दुर्लभ जीवन को सार्थक बनाने का संदेश दिया। उन्होंने जो बोला सहज रूप से बोला, सरल व सुबोध शैली में बोला। आपकी वाणी ने लोक हृदय को अपूर्व दिव्यता प्रदान की। आपका समवशरण जहां भी गया वह कल्याण धाम हो गया।
यदि आज संसार के लोग भगवान महावीर के अहिंसा परमोधर्म, अपरिग्रह व अनेकांतवाद को अपना लें तो प्रत्येक प्रकार की समस्याएं मिट सकती हैं, शांति स्थापित हो सकती है और मानव सुखी रह सकता है। मानवीय गुणों की उपेक्षा के इस समय में महावीर के कल्याण का दिन हमसे अपने जातीय भेद भुलाकर सत्य से साक्षात का संदेश देता है। सम्पूर्ण विश्व में जियो और जीने दो का संदेश फैलाने वाले ऐसे भगवान महावीर स्वामी को शत्-शत् नमन।