महेश नवमी: महेश स्वयं जपते थे ये ‘महामंत्र’, काशी में देते थे इसका उपदेश

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Jun, 2019 11:56 AM

mahesh navami 2019

भगवान शिव कल्याणकारी, मंगलमय और परम शांतिमय हैं। शिव-शंकर की लीलाएं भक्त समाज भली-भांति जानता है। उनकी लीलाओं में संसार के समस्त मंगलों के मूल का रहस्य छिपा हुआ है। शिव जी समस्त विधाओं के मूल कारण, मूलाधार, रक्षक, पालक, नियन्ता एवं महामहेश्वर कहे...

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भगवान शिव कल्याणकारी, मंगलमय और परम शांतिमय हैं। शिव-शंकर की लीलाएं भक्त समाज भली-भांति जानता है। उनकी लीलाओं में संसार के समस्त मंगलों के मूल का रहस्य छिपा हुआ है। शिव जी समस्त विधाओं के मूल कारण, मूलाधार, रक्षक, पालक, नियन्ता एवं महामहेश्वर कहे जाते हैं। वह समस्त देवताओं के भी परम देव यानी आराध्यदेव सभी स्वामियों के स्वामी, नित्य-अनादि, अजन्मा और परब्रह्म पूर्ण प्रकाशयुक्त परमात्मा हैं। वह दिग्वसन होते हुए भी भक्तों को अतुल ऐश्वर्य प्रदान करने वाले, अनन्त राशियों के अधिपति होते हुए भी भस्मभूषित, श्मशानवासी कहे जाने वाले, अर्धनारीश्वर कहलाते हैं।

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अव्यक्त होते हुए भी शिवजी व्यक्त हैं तथा सबके कारण होते हुए भी अकारण हैं। यह शिवजी की लीला-विभूति का ही शुभ फल है। केवल देवता ही नहीं, अपितु ऋषि-मुनि, ज्ञानी-ध्यानी, योगी सिद्ध महात्मा, विद्याधर, असुर, नाग, किन्नर, चारण, मनुष्य आदि सभी भगवान शंकर के लीला-चरित्रों का ध्यान-स्मरण, चिंतन करके आनंदित होते रहते हैं लेकिन सबसे सरल व उत्तम साधना है उस ‘महामंत्र’ का स्मरण करना जिसे भगवान शिव स्वयं जपते थे। रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कह रहे हैं-

महामंत्र जेहि जपत महेशू, काशी-मुक्ति-हेतु उपदेशू।।

अर्थात वह ‘महामंत्र’ जिसे महेश स्वयं जपते थे और काशी में लोगों को इसका उपदेश देते थे, यही मुक्ति का साधन है। अब लोगों की मान्यता है ॐ नम: शिवाय ही वह महामंत्र है लेकिन यदि यही महामंत्र  होता तो गोस्वामी जी को भला महामंत्र कहने की क्या जरूरत पड़ती? सीधे-सीधे कहते ‘नम: शिवाय जेहि जपत महेशू, काशी मुक्ति हेतु उपदेशू।’

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ऐसा महामंत्र जो सभी मंत्रों से भी महान है, बड़ा है तथा जिसमें अक्षर यानी शब्द नहीं हैं, ऐसा महामंत्र जिसकी न शुरूआत है और न अंत जबकि अनुभूत किया जाता है। निरक्षर, बिना शब्दों का जो मुख से उच्चारित नहीं होता, फिर भी महसूस कर सकते हैं ऐसा ‘महामंत्र’। इसीलिए तो कहा है अव्यक्त होते हुए भी व्यक्त है प्रकट है, साक्षात है, न कि काल्पनिक है।

वही महामंत्र-बीजमंत्र है शिव जी का मूलमंत्र है जिसे स्वयं शिव जी स्मरण करते हैं, उस महामंत्र में सदैव लीन रहते हैं। कोई भी सांसारिक या आध्यात्मिक व्यक्ति, सभी इस महामंत्र का स्मरण करके भोले बाबा को प्रसन्न कर लेते हैं। शिवपुराण के जरिए शिव जी कह रहे हैं ‘कलिकाल में मनुष्य मेरी परम विद्या का आश्रय लेकर, भक्ति-भाव से महामंत्र का जप करके संसार के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।

वह महामंत्र अकथनीय और अचिंतनीय है तथा उसका चिंतन समस्त दुखों को व बुराइयों का हरण करता है। यह विद्या संसार सागर को तारने वाली है, इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है।

शिव का पूजक, आराधक सहनशील होता है तथा मन-वाणी-कर्म से सभी मनुष्यों का सदा भला करता है? शिव-भक्त हृदय में ज्ञान और प्रेम भरकर अपने आपको परम मंगलमय और सौभाग्यशाली बनाता है।

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