Criminal बनाएंगे ये काम

Edited By Jyoti,Updated: 10 May, 2018 12:31 PM

manu smriti in hindi

मनुस्मृति हिंदू धर्म के प्रमुख शास्त्रों में से एक है। इसे और भी कई नाम से जाना जाता है जैसे मनुसंहिता मानव-धर्म-शास्त्र आदि। इस नीतिशास्त्र की मान्यता जगविख्यात है। न केवल भारत में अपितु विदेश में भी इसके प्रमाणों के आधार पर निर्णय होते रहे हैं

मनुस्मृति हिंदू धर्म के प्रमुख शास्त्रों में से एक है। इसे और भी कई नाम से जाना जाता है जैसे मनुसंहिता मानव-धर्म-शास्त्र आदि। इस नीतिशास्त्र की मान्यता जगविख्यात है। न केवल भारत में अपितु विदेश में भी इसके प्रमाणों के आधार पर निर्णय होते रहे हैं और आज भी होते हैं। अतः धर्मशास्त्र के रूप में मनुस्मृति को विश्व की अमूल्य निधि माना जाता है। 


समाज को सही दिशा और ज्ञान प्रदान करने के लिए मनुस्मृति की नीतियां बहुत महत्वपूर्ण मानी गई हैं। इन नीतियों का पालन करके मनुष्य जीवन में कई लाभ प्राप्त कर सकता है। मनुस्मृति में इन्द्रियों के बारे में बताया गया है। जिन्हें अगर वश में न रखा जाए तो मनुष्य अपना नुकसान कर बैठता है। मनुस्मृति के इस श्लोक से इसके बारे में अच्छी तरह समझा जा सकता है-


श्लोक
इन्द्रियाणां प्रसड्गेन दोषमृच्छत्यसंशयम्।
संनियम्य तु तान्येव ततः सिद्धिं नियच्छति।।


अर्थात- शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध
इन इन्द्रियों के वश में होकर मनुष्य अवश्य ही दोष का भागी हो जाता है।

 

शब्द
शब्द बाणों की तरह होते हैं। कहते हैं कि मुंह से निकला हुआ शब्द और धनुष से निकलता हुआ बाण कभी वापस नहीं लिया जा सकता, इसलिए इंसान को इसका प्रयोग सोच-समझ कर करना चाहिए। बिना सोचे-समझे प्रयोग किए गए शब्दों से मनुष्य अपना नुकसान कर बैठता है। कई बार गुस्से में मनुष्य वे बातें बोल जाता है, जो उसे बिल्कुल नहीं कहनी चाहिए। इसलिए, मनुष्य को हमेशा ही शब्दों का प्रयोग बहुत सोच-समझकर करना चाहिए।

 

स्पर्श
कई बार व्यक्ति के ऊपर उसका हावी हो जाता है जिस कारण वह अपने वश से बाहर हो जाता है। एेसे लोगों के लिए अच्छा-बुरा कुछ नहीं होता। अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए किसी के साथ भी बुरा व्यवहार कर सकता है। ऐसी भावना उसे दोषी बनने पर मज़बूर कर सकती है। इसलिए, मनुष्य को कभी ऐसी भावनाओं के अधीन नहीं होना चाहिए।


रूप
किसी के रूप-सौंर्दय से आकर्षित होने पर मनुष्य के मन में उसे पाने की चाह जागने लगती है। रूप-सौंर्दय के वश में होकर मनुष्य हर काम में उस व्यक्ति का साथ लेने लगता है। हर व्यक्ति का अपनी आंखों पर नियंत्रण होना चाहिए। वो क्या देखें और किस भाव से देखें, इस बात का निर्णय उसे अपनी बुद्धि से लेना चाहिए है। जब इंसान बिना संयम के अपनी आंखों का उपयोग करता है तो, ऐसी स्थिति में वह सही-गलत की पहचान नहीं कर पाता और दोष का भागी बन जाता है।

 

रस
जिस इंसान का अपनी ज़ुबान पर काबू नहीं होता है, जो सिर्फ स्वाद के लिए ही खाना खोजता है। ऐसा इंसान जल्दी बीमारियों की गिरफ्त में आ जाता है। जुबान को वश में करने की बजाय वह खुद उसके वश में हो जाता है। ऐसा इंसान सिर्फ स्वाद के चक्कर में अपनी सेहत से समझौता करता है और कई बीमारियों का शिकार हो जाता है।

 

ख़ुशबू
नासिका यानी हमारी नाक भी हमारी पांच इंद्रियों में बहुत महत्वपूर्ण है। सांस लेने के अलावा यह सूंघने का भी काम करती है। अक्सर इंसान किसी चीज के पीछे तीन कारणों से ही पड़ता है, या तो उसका रंग-रुप व आकृति देखकर, उसके स्वाद के कारण या फिर उसकी गंध के कारण। कई बार अच्छी महक वाली वस्तुएं भी स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होती है। हमें अपनी नाक पर भी नियंत्रण रखना चाहिए, जिससे नुकसान से बचा जा सके।

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