मनुस्मृति : किन घरों में देवता निवास नहीं करते

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 Dec, 2018 03:46 PM

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प्राचीन भारत के इतिहास पर नज़र दौड़ाएं तो पता चलता है कि यहां महिलाओं को आदरपूर्ण स्थान दिया जाता रहा है। मनुस्मृति में इनके महत्व पर प्रकाश डाला गया है। जहां स्त्रियों की पूजा होती है,

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प्राचीन भारत के इतिहास पर नज़र दौड़ाएं तो पता चलता है कि यहां महिलाओं को आदरपूर्ण स्थान दिया जाता रहा है। मनुस्मृति में इनके महत्व पर प्रकाश डाला गया है। जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं और जहां इनका अनादर होता है, वहां के सभी काम असफल हो जाते हैं। मनुस्मृति में मनु के अनुसार नारी समाज का आधार है। जैसे बिना भूमि में कोई भी पेड़-पौधा नहीं हो सकता, वैसे ही बिना नारी के कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हो सकती।
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नारी जाति के संबंध में स्मृतिकारों के विचार बहुत ही उत्तम हैं। इनके विचार में नारियां साक्षात देवी स्वरूपा हैं। मनु कहते हैं-पिता, भाई, पति, देवर जो भी अपना विशेष कल्याण चाहते हैं, वे स्त्रियों का आदर करें और उन्हें वस्त्र, आभूषण आदि उपहार में दें, क्योंकि जिस कुल में बहन,
पत्नी, कन्या, पुत्रवधू और माता आदि स्त्रियां दुखी रहती हैं, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है और जिस कुल में स्त्रियां दुखी नहीं रहतीं, वह कुल सदा समृद्धि एवं उन्नति की ओर बढ़ता रहता है।
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मनु ने कहा है, जिस कुल में पत्नी को पति से संतोष है और पत्नी से पति संतुष्ट है, वहां सदा कल्याण होता है। मनुस्मृति में यह बात कही गई है कि घर की स्वामिनी स्त्री है। पुरुष केवल कमाई करता है, उसका संग्रह और उपयोग घर की गृहिणी के अधीन होता है। पति का सब कुछ स्त्री का है। शादी के बंधन में बंध जाने के बाद पति-पत्नी का यह कर्तव्य हो जाता है कि उनमें कोई भेद उत्पन्न न हो और वे एक-दूसरे के प्रति ईमानदार रहें। मनु स्मृति में पति के लिए स्पष्ट निर्देश है कि वह केवल अपनी पत्नी से प्रेम करे। सभी धार्मिक काम पति-पत्नी को मिलकर करने चाहिए, जिससे मृत्यु के बाद भी उन्हें सुख की प्राप्ति हो सके।
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मनुष्य के लिए जितने भी संस्कार आवश्यक हैं उनमें से अधिकतर संस्कार पति-पत्नी के सहयोग से ही संभव हैं। पति-पत्नी का संबंध मृत्यु के उपरांत भी बना रहता है। मनुस्मृति में पत्नी को घर की ‘देवी’ कहा गया है। नारी गृहलक्ष्मी है कन्या, बहन, माता और पत्नी सभी रूपों में नारी-पुरुष के स्नेह, प्रेम और आदर की अधिकारिणी है। वास्तव में नारी सदा वंदनीय एवं पूजनीय है। इस प्रकार मनु ने नारी को गृहस्थ जीवन का आधार माना है। मनु कहते हैं कि स्त्री ही घर है। पत्नी से रहित घर जंगल से भी बढ़कर है।
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