मीरा बाई जयंती: जानिए, श्री कृष्ण की परम भक्त मीरा से जुड़ी कुछ खास बातें

Edited By Jyoti,Updated: 12 Oct, 2019 06:07 PM

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मीरा बाई, ये ऐसा नाम है जिससे शायद ही कोई अंजान होगा। मीरा बाई वो हस्ती थी जिन्होंने ताउम्र केवल श्री कृष्ण की भक्ति का ही गुणगान किया था। इनके लिए दुनिया के सारे रस फ़िके थे,

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मीरा बाई, ये ऐसा नाम है जिससे शायद ही कोई अंजान होगा। मीरा बाई वो हस्ती थी जिन्होंने ताउम्र केवल श्री कृष्ण की भक्ति का ही गुणगान किया था। इनके लिए दुनिया के सारे रस फ़िके थे, केवल रस था तो श्री कृष्ण के नाम में। कल यानि 13 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा के दिन मीरा बाई जयंती भी मनाई जाएगी। बता दें हर साल आश्विन मास सी शरद पूर्णमा के दिन ही मीरा बाई जंयती मनाई जाती है। कहते हैं इनका पूरा जीवन बहुत रहस्यों के भरा हुआ है। तो चलिए इनकी जयंती के खास अवसर पर जानते हैं इनसे संबंधित कुछ खास बातें-
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मीरा बाई भगवान श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त मानी जाती है। मीरा बाई ने जीवनभर भगवान कृष्ण की भक्ति की और कहा जाता है कि उनकी मृत्यु भी भगवान की मूर्ति में समा कर हुई थी। मीरा बाई की जयंती पर कोई ऐतिहासिक रिकॉर्ड तो नहीं हैं, लेकिन हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन को मीराबाई की जयंती के रूप में मनाया जाता है। मीरा बाई के जीवन से जुड़ी कई बातों के को आज भी रहस्य माना जाता है। गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तक भक्त-चरितांक के अनुसार मीरा बाई के जीवन और मृत्यु से जुड़ी कुछ बातें बताई गई हैं।

मीराबाई जोधपुर, राजस्थान के मेड़वा राजकुल की राजकुमारी थीं। ये मेड़ता महाराज के छोटे भाई रतन सिंह की एकमात्र संतान थीं। कहा जाता है मीरा जब केवल दो वर्ष की थीं जब उनकी माता की मृत्यु हो गई। इसलिए इनके दादा राव दूदा उन्हें मेड़ता ले आए और अपनी देख-रेख में उनका पालन-पोषण किया। बता दें कि मीराबाई का जन्म 1498 के लगभग हुआ था।

तुलसीदास के कहने पर की राम की भक्ति
इतिहास में कुछ जगह ये मिलता है कि मीरा बाई ने तुलसीदास को गुरु बनाकर रामभक्ति भी की। ऐसा कहा जाता है कृष्ण भक्त मीरा ने राम भजन भी लिखे हैं, हालांकि इसका स्पष्ट उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। माना जाता है तुलसी दास के कहने पर मीरा ने कृष्ण के साथ ही रामभक्ति के भजन लिखे। जिसमें सबसे प्रसिद्ध भजन है पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।

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बचपन से ही श्रीकृष्ण भक्त
मीराबाई का मन बचपन से ही कृष्ण-भक्ति में रम गया था। मीराबाई के बालमन से ही कृष्ण की छवि बसी थी इसलिए यौवन से लेकर अपने अंतिम समय तक उन्होंने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना था। पौराणिक कथाओं के अनुसार मीरा का कृष्ण प्रेम इनके बचपन की एक घटना की वजह से चरम पर पहुंचा था।

जो इस प्रकार थी कि बाल्यकाल में एक दिन उनके पड़ोस में किसी धनवान व्यक्ति के यहां बारात आई थी। सभी स्त्रियां छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थीं। मीराबाई भी बारात देखने के लिए छत पर आ गईं। बारात को देख मीरा ने पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है इस पर मीराबाई को उपहास में ही भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की तरफ़ इशारा करते हुए कह दिया गया कि यही तुम्हारे दूल्हा है जो बात उनके मन में समा गई तब से ही वे श्री कृष्ण को अपना पति समझने लगीं।

विवाह योग्य होने पर मीराबाई के घर वाले उनका विवाह करना चाहते थें, लेकिन मीराबाई श्रीकृष्ण को पति मानने के कारण किसी और से विवाह नहीं करना चाहती थी। मीराबाई की इच्छा के विरुद्ध जाकर उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज के साथ कर दिया गया। परंतु विवाह के कुछ साल बाद ही मीराबाई के पति भोजराज की मृत्यु हो गई। पति की मौत के बाद मीरा को भी भोजराज के साथ सती करने का प्रयास किया गया, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुई। इसके बाद मीरा पहले वृंदावन और फिर द्वारिका में मीरा ने कृष्ण भक्ति की और जोगन बनकर साधु-संतों के साथ रहने लगीं।

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कृष्ण भक्ति
धीरे-धीरे उनकी भक्ति बढ़ती गई। वे मंदिरों में जाकर श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने घंटो तक नाचती रहती। मगर मीराबाई की ऐसी कृष्ण भक्ति उनके पति के परिवार को अच्छी नहीं लगी। जिस कारण उनके परिजनों ने मीरा को कई बार विष देकर मारने की भी कोशिश की। पंरतु श्रीकृष्ण की कृपा से मीराबाई हमेशा बच जाती।

श्रीकृष्ण में समा गई थी मीरा बाई
जीवनभर मीराबाई की भक्ति करने के कारण उनकी मृत्यु श्रीकृष्ण की भक्ति करते हुए ही हुई थीं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है वर्ष 1547 में द्वारका में कृष्ण भक्ति करते-करते श्री कृष्ण की मूर्ति में ही समां गईं थी।

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