गर्भपात करवाने से लगते हैं ये महापाप

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Jul, 2019 04:34 PM

miscarriage according to astrology and epics

अबॉर्शन या गर्भपात एक ऐसी स्थिति है, जिसका फैसला महिला किसी मजबूरी के तहत लेती है। कई बार वे अपनी इच्छा से भी इस निर्णय तक पहुंचती है। ज्योतिष विद्वान कहते हैं, कुंडली में ग्रहों की चाल भी महिला के गर्भपात का बड़ा कारण हो सकती है।

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अबॉर्शन या गर्भपात एक ऐसी स्थिति है, जिसका फैसला महिला किसी मजबूरी के तहत लेती है। कई बार वे अपनी इच्छा से भी इस निर्णय तक पहुंचती है। ज्योतिष विद्वान कहते हैं, कुंडली में ग्रहों की चाल भी महिला के गर्भपात का बड़ा कारण हो सकती है। ज्‍योतिष गणना और ग्र‍हों की स्थिति व्यक्ति के जीवन के हर पहलू पर अपना प्रभाव रखती है। चंद्रमा जब क्रूर ग्रहों के साथ मिल कर उथल- पुथल मचाता है तो महिलाओं को मिसकैरिज जैसी स्थितियों को फेस करना पड़ता है। जब महिलाओं की कुंडली में चन्द्रमा अशुभ चल रहा हो तो उनकी हेल्थ पर अशुभ प्रभाव पड़ता है। हिस्टिरिया, डिप्रेशन, शारीरिक कमजोरी, ल्यूकोरिया आदि समस्याएं ग्रहों से होने वाली समस्याओं की देन हैं। जो महिलाएं जाने-अनजाने मिसकैरिज जैसा पाप करती है, उन्हें ब्रह्म हत्या से जो पाप लगता है, उससे दुगना पाप गर्भपात करने से लगता है। इस गर्भपात रूपी महापाप का कोई प्रायश्चित भी नहीं है, इसमें तो उस स्त्री का त्याग कर देने का ही विधान है। ऐसा पाराशर स्मृति में कहा गया है।

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मनुस्मृति में बताया गया है, यदि अन्न पर गर्भपात करने वाले की दृष्टि भी पड़ जाए तो वह अन्न खाने लायक नहीं रहता।

गर्भस्थ शिशु को अनेक जन्मों का ज्ञान होता है। इसलिए श्रीमद् भागवत  में उसको ऋषि (ज्ञानी) कहा गया है। अत: उसकी हत्या से बढ़ कर और  क्या पाप होगा।

संसार का कोई भी श्रेष्ठ धर्म गर्भपात को समर्थन नहीं देता और न ही दे सकता है, क्योंकि यह कार्य मनुष्यता के विरुद्ध है। जीवमात्र को जीने का अधिकार है। उसको गर्भ में ही नष्ट करके उसके अधिकार को छीनना महापाप है।

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स्वामी रामसुखदास जी कहते हैं, गर्भ में बालक निर्बल और असहाय अवस्था में रहता है। वह अपने बचाव का कोई उपाय भी नहीं कर सकता तथा अपनी हत्या का प्रतिकार भी नहीं कर सकता। अपनी हत्या से बचने के लिए वह पुकार भी नहीं सकता, रो भी नहीं सकता। उसका कोई अपराध, कसूर भी नहीं है-ऐसी अवस्था में जन्म लेने से पहले ही उस निरपराध, निर्दोष, असहाय बच्चे की हत्या कर देना पाप की, कृतघ्नता की, दुष्टता की, नृशंसता की, क्रूरता की, अमानुषता की, अन्याय की आखिरी हद है। 

नारद पुराण के अनुसार श्रेष्ठ पुरुषों ने ब्रह्म हत्या आदि पापों का प्रायश्चित बताया है, पाखंडी और परनिंदक का भी उद्धार होता है, किन्तु जो गर्भस्थ शिशु की हत्या करता है उसके उद्धार का कोई उपाय नहीं है। 

संन्यासी की हत्या करने वाला तथा गर्भ की हत्या करने वाला महापापी कहलाता है। वह मनुष्य कुंभीपाक नरक में गिरता है। फिर हजार जन्म गीध, सौ जन्म सुअर, सात जन्म कौआ और सात जन्म सर्प होता है। फिर 60 हजार वर्ष विष्ठा का कीड़ा होता है। फिर अनेक जन्मों में बैल होने के बाद कुष्ठ रोगी होता है।

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