सोमवार को किया ये काम दिलाएगा शिव-पार्वती का भरपूर प्यार

Edited By Lata,Updated: 28 Jan, 2019 11:24 AM

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हिंदू धर्म के अनुसार सोमवार का दिन भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। वैसे तो हर दिन ही इनकी पूजा करने का विधान होता है

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हिंदू धर्म के अनुसार सोमवार का दिन भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। वैसे तो हर दिन ही इनकी पूजा करने का विधान होता है लेकिन सोमवार के दिन विशेष व्रत और पूजन किया जाता है। कहा जाता है कि अगर पूरे विधि-विधान के साथ सोमवार का व्रत किया जाए तो व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है। तो चलिए आज हम आपको इस व्रत की विधि और कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। 
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व्रत की विधि:
नारद पुराण के अनुसार सोमवार के व्रत में व्यक्ति को प्रातः स्नान करके शिव जी को जल या दूध और बेल पत्र चढ़ाना चाहिए।

भगवान शिव और माता गौरी की सच्चे मन से पूजा करनी चाहिए। 

पूजन के बाद सोमवार व्रत कथा सुने और आरती करनी चाहिए।

पूरे दिन व्रत का संकल्प करने के बाद केवल एक समय ही भोजन करें लेकिन नमक का प्रयोग भोजन में नहीं करना चाहिए। 

शास्त्रों में सोमवार का व्रत तीन प्रकार का होता है प्रति सोमवार व्रत, सौम्य प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार का व्रत, इन सब व्रतों के लिए एक ही विधि बताई गई है।
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व्रत कथा:
किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी इस कारण वह बहुत दुखी था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह हर सोमवार व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था। उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने को कहा। पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि 'हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है। माता के बार-बार कहने पर भोलेनाथ ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उस बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी। माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था। उसे इस बात से न तो खुशी हुई और न दुख। वे पहले की तरह उनकी पूजा-अर्चना करता रहा। 
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समय बीत जाने पर उसके घर एक पुत्र का जन्म हुआ। जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेजने की इच्छा रखी तभी उसने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराना और वहां ब्राह्मणों को भोजन व दक्षिणा देते हुए जाना।

कुछ समय बाद वे दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े। रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची। उसने साहूकार के पुत्र को देखकर सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। तभी उस लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था, उसे ये बात न्यायसंगत नहीं लगी और अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि 'तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है और मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।
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जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई तो राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है, मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ।

शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती ने भगवान से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें। जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया, इसकी आयु पूरी हो चुकी है। लेकिन माता पार्वती के कहने पर भोलेनाथ ने बालक को और आयु प्रदान की और वे लड़का जीवित हो गया।
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फिर वे वापिस अपने नगर को चलने लगे। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया तभी लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया। इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। इसी तरह जो कोई व्यक्ति सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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