Edited By Jyoti,Updated: 28 Jun, 2020 04:50 PM
एक चित्रकार को किसी सौम्य किशोर का चित्र बनाना था। उसने बहुत घूम-फिरकर ऐसे किशोर को ढूंढकर उसका चित्र बनाया। चित्र की खूब प्रशंसा हुई।
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एक चित्रकार को किसी सौम्य किशोर का चित्र बनाना था। उसने बहुत घूम-फिरकर ऐसे किशोर को ढूंढकर उसका चित्र बनाया। चित्र की खूब प्रशंसा हुई। कुछ वर्षों पश्चात उसे एक अत्यंत क्रूर अपराधी का चित्र बनाने की इच्छा हुई। वह बंदीगृहों में घूम-घूमकर सर्वाधिक दुष्ट आकृति वाला व्यक्ति ढूंढने लगा। एक बंदीगृह में उसे ऐसा ही व्यक्ति दिखा, जिसका उसने चित्र बनाया। इस चित्र की खूब प्रशंसा हुई।
सज्जनता और दुष्टता की झलक दिखाते इन दो परस्पर प्रतिकृतियों का जोड़ा चित्र जगत में बहुत प्रख्यात हुआ। कुछ समय पश्चात वही दुष्ट व्यक्ति चित्रकार से मिलने पहुंचा। चित्रकार ने उसका परिचय पूछा तो वह बोला, ‘‘ये दोनों चित्र आपने मेरे ही बनाए हैं।’’
यह सुनकर चित्रकार अवाक रह गया।
उसने पूछा, ‘‘इतना परिवर्तन कैसे हुआ? तुम्हारी सौम्यता क्रूरता में कैसे बदल गई?’’
यह सुनकर उसकी आंखों में आंसू बहने लगे। वह रुंधे गले से बोला, ‘‘बुरी संगति से ही मेरी यह दुर्गति हुई।"
तभी तो कहा जाता है ‘‘संगत से गुण आवत हैं, संगत से गुण जात।’’