Edited By Jyoti,Updated: 05 Jul, 2020 05:07 PM
कटक में हैजे का प्रकोप फैल रहा था। उडिय़ा बाजार मोहल्ले में उसका प्रभाव सर्वाधिक था, क्योंकि यहां के लोग सफाई की ओर ध्यान नहीं देते थे।
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कटक में हैजे का प्रकोप फैल रहा था। उडिय़ा बाजार मोहल्ले में उसका प्रभाव सर्वाधिक था, क्योंकि यहां के लोग सफाई की ओर ध्यान नहीं देते थे। उन लोगों की दयनीय दशा देख कर कुछ सेवाभावी बालकों को अत्यंत व्यथा हुई, परिणामत: वे दल बनाकर उस मोहल्ले की सफाई और रोगियों की सेवा में लग गए। इस दल के अगुआ सुभाष बाबू थे, जो तब ग्यारह-बारह वर्ष के थे।
इस सेवा से लोगों के प्राणों की रक्षा होने लगी, परंतु वहां रहने वाले एक गुंडे हैदर खां को यह अच्छा नहीं लग रहा था। उसने देखा कि ये लड़के ‘बाबूपाड़ा’ मोहल्ले के हैं, जहां अधिकांश वकील रहते हैं।
इन वकीलों के कारण ही मुझे जेल जाना पड़ता है, ऐसा सोच कर वह उस मोहल्ले के लोगों के प्रति शत्रुता रखता था और अपने मोहल्ले के वासियों से उन लड़कों की सेवा न लेने को कहता था। उसके गुंडे होने के कारण लोग उसकी बात मान कर सेवा लेने से इंकार करते तो लड़के और अधिक विनम्रतापूर्वक सेवा करते। संयोगवश तीन-चार दिन बाद ही हैदर खां के लड़के को हैजा हो गया। लड़कों का पूरा दल हैदर खां के यहां आकर सफाई व सेवा में जुट गया।
हैदर इस दृश्य को देख कर स्तब्ध रह गया, उसके मन से शत्रुता के भाव नष्ट हो गए। उसने कहा, ‘‘बालको! मैं हैदर गुंडा हूं, मैं तुम्हारा शत्रु हूं।’’
सुभाष ने कहा, ‘‘यह रोगी हमारा भाई है। भाई का पिता हमारा शत्रु नहीं हो सकता।’’
हैदर के रुंधे स्वर से बालकों से क्षमा मांगी, उसका हृदय-परिवर्तन हो गया। अब वह भी बालकों के साथ सेवा कार्य में तत्पर हो गया।