Edited By Jyoti,Updated: 23 Jul, 2020 11:15 AM
महान दार्शनिक च्वांगत्से अपने थैले में मुर्दे की एक खोपड़ी रखा करते थे। वे कहा करते थे, ‘‘जब मुझे अहंकार हो आता है तब मैं इस खोपड़ी को देख लेता हूं तथा सोचने लगता
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महान दार्शनिक च्वांगत्से अपने थैले में मुर्दे की एक खोपड़ी रखा करते थे। वे कहा करते थे, ‘‘जब मुझे अहंकार हो आता है तब मैं इस खोपड़ी को देख लेता हूं तथा सोचने लगता हूं कि एक दिन सबका हश्र इस खोपड़ी जैसा होना है।’’
च्वांगत्से एक दिन कहीं जा रहे थे। उन्होंने एक सुंदर अमीर युवक को एक गरीब बूढ़े मजदूर की पिटाई करते देखा। गरीब सड़क पर पड़ा कराह रहा था तथा युवक उसे पीटे जा रहा था। उन्होंने कहा, ‘‘तुम इसकी पिटाई क्यों किए जा रहे हो?’’
युवक ने उत्तर दिया, ‘‘यह मेरे कारखाने में मज़दूर है। काम करने की जगह सो जाता है इसलिए इसे सबक सिखा रहा हूं।’’
च्वांगत्से ने कहा, ‘‘काम करते-करते थक कर सो गया होगा। इस पर कुछ तो दया करो।’’
युवक ने अपने धन तथा जवानी के अहंकार में आकर उन्हें झिड़कते हुए कहा, ‘‘जाओ अपना काम करो।’’
च्वांगत्से ने थैले में से खोपड़ी निकाली तथा बोले, ‘‘बेटा इस बूढ़े की आह तुम्हारी जवानी और अहंकार को इस तरह हड्डी के ढांचे में बदल देगी।’’
खोपड़ी को देखते ही युवक का नशा काफूर हो गया तथा उसने भविष्य में किसी का उत्पीड़न न करने का निर्णय ले लिया। —शिव कुमार गोयल