Edited By Jyoti,Updated: 30 Nov, 2020 02:21 PM
कौशल देश के राजा बड़े दानवीर थे। उनकी दानशीलता का यश दूर-दूर तक फैला हुआ था। कौशलराज की यह कीर्ति काशी महाराज को सहन न हुई। उन्होंने कौशल पर चढ़ाई कर दी। उस लड़ाई में कौशलराज की हार हुई।
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कौशल देश के राजा बड़े दानवीर थे। उनकी दानशीलता का यश दूर-दूर तक फैला हुआ था। कौशलराज की यह कीर्ति काशी महाराज को सहन न हुई। उन्होंने कौशल पर चढ़ाई कर दी। उस लड़ाई में कौशलराज की हार हुई। प्राण बचाने के लिए वह जंगल में भाग गए। सब कहने लगे, ‘‘राहू चंद्रमा को निगल गया। लक्ष्मी ने भी बलवान को पसंद किया। धर्मात्मा की तरफ न देखा। हमारे सिर का छत्र चला गया।’’
काशीराज ने जब इस तरह की बातें सुनीं तो उन्हें ईर्ष्या होने लगी, लोगों की बातें सुन-सुन कर वे और जलने लगे। उन्होंने ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो कोई कौशलराज को जिंदा या मरा हुआ लाएगा उसे एक हजार अशॢफयां ईनाम दी जाएंगी। उधर कौशलराज फटेहाल जंगल-जंगल मारे फिर रहे थे। एक दिन एक दुर्दशा से ग्रस्त किसी व्यापारी पथिक ने उनसे कौशल देश का रास्ता पूछा।
राजा ने पूछा, ‘‘उस अभागे देश में क्यों जा रहा है भाई?’’
व्यापारी ने अपनी दुर्दशा कह सुनाई। उसकी धनहानि की गाथा सुनकर राजा के नेत्र भी सजल हो गए। बोले, ‘‘चल तेरी मनोकामना पूॢत का मार्ग बताऊं।’’ जटाजूट राजा उसे कौशलराज के दरबार में ले गए और कहा, ‘‘काशीराज! मैं ही कौशलराज हूं। मुझे पकड़कर लाने वाले के लिए आपने जो ईनाम घोषित किया है, वह मेरे इस साथी को प्रदान कराइए।’’
सभा में सन्नाटा छा गया। काशीराज भी स्तब्ध रह गए। कुछ क्षण बाद वे बोले, ‘‘कौशलराज तुम धन्य हो। मैं तुम्हें तुम्हारा सारा राज्य वापस देता हूं और अपना हृदय भी। अब इसी सिंहासन पर बैठकर राज भंडार में से इस वणिक को तुम जितना चाहे धन दे दो।’’
यह कहकर काशीराज सिंहासन से उठे, कौशलराज को सिंहासन पर बिठाया और अपने सिर से मुकुट उतार कर उन्हें पहना दिया। सभा जय-जयकार करने लगी। —राजेश जैन