नारी सम्मान के रूप में एक मिसाल माना जाता है "स्मृति मंदिर"

Edited By Jyoti,Updated: 20 Sep, 2020 06:09 PM

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हमारे धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि नारी की पूजा जहां होती है, वहां कभी धन की कमी नहीं होती। वहां देवताओं का वास होता है लेकिन संसार में ऐसे लोग भी होते हैं जो नारी को विशिष्ट सम्मान देते हैं।

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हमारे धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि नारी की पूजा जहां होती है, वहां कभी धन की कमी नहीं होती। वहां देवताओं का वास होता है लेकिन संसार में ऐसे लोग भी होते हैं जो नारी को विशिष्ट सम्मान देते हैं। हिंदी के महान साहित्यकार महावीर प्रसाद द्विवेदी इन्हीं में से एक हैं।  उन्होंने पत्नी की मृत्यु के बाद उनकी मूर्ति स्थापित करवाई थी जिसे लोग ‘स्मृति मंदिर’ के नाम से जानते हैं। यह मंदिर उनके रायबरेली जिले के गांव दौलतपुर में स्थित है। इसके पीछे की कहानी बड़ी ही रोचक है। दरअसल द्विवेदी जी की पत्नी ने परिवार द्वारा स्थापित हनुमान (महावीर) जी की मूर्ति के लिए एक चबूतरा बनवाया। 
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जब द्विवेदी जी जिला रायबरेली के अपने गांव दौलतपुर आए तो पत्नी ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘लो जी, मैंने तुम्हारा (महावीर यानी हनुमान) चबूतरा बनवा दिया है।’’

यह बात सुन द्विवेदी जी ने कहा, ‘‘अगर तुमने मेरा चबूतरा बनवा दिया है तो मैं तुम्हारा मंदिर बनवा दूंगा।’’
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गांव के रीति-रिवाज के अनुसार स्त्रियां अपने पति का नाम नहीं लेती थीं, इसलिए उन्होंने महावीर नाम न लेते हुए ऐसा कहा। द्विवेदी जी की पत्नी न तो विदुषी थी और न ही रूपवती लेकिन वह एक अच्छी पत्नी थीं। इसलिए द्विवेदी जी भी उनसे बेहद स्नेह करते थे, उतना ही उन्हें सम्मान देते थे।

यह बात वहीं समाप्त हो गई लेकिन सन् 1912 में जब द्विवेदी जी की पत्नी का गंगा नदी में डूब जाने पर अचानक निधन हुआ तो उन्हें अपना वायदा याद आया। उन्होंने अपने घर के आंगन के बीच देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती के नजदीक ही संगमरमर की अपनी पत्नी की मूर्ति स्थापित की। प्रतिमा स्थापित करते समय उन्हें सामाजिक विरोध सहना पड़ा लेकिन उन्होंने इस बात की चिंता नहीं की। आज यह स्मृति मंदिर लोगों के लिए नारी सम्मान के रूप में एक मिसाल है।

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