Edited By Jyoti,Updated: 03 Mar, 2021 05:18 PM
संत दादू दयाल जी जिस रास्ते से निकलते थे वहां बीच में एक ऐसा घर पड़ता था जहां रहने वाला व्यक्ति उनकी भरपूर निंदा करता था। कई बार जब वह निंदक नजर
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संत दादू दयाल जी जिस रास्ते से निकलते थे वहां बीच में एक ऐसा घर पड़ता था जहां रहने वाला व्यक्ति उनकी भरपूर निंदा करता था। कई बार जब वह निंदक नजर नहीं आता तब भी संत दादू दयाल जी उसके मकान के सामने कुछ देर प्रतीक्षा करते और आगे बढ़ जाते।
कुछ दिन वह निंदक दिखाई नहीं पड़ा तो संत दादू दयाल जी ने आसपास पूछा। पूछने पर पता लगा कि उस व्यक्ति की मृत्यु हो गई है। इस बात से दयाल जी अत्यंत दुखी होकर जोर-जोर से रोने लगे। शिष्य ने पूछा, ‘‘गुरुदेव! आप क्यों रोते हैं? वह तो आपका निंदक था, वह मर गया तो आपको प्रसन्न होना चाहिए परंतु आप तो रो रहे हैं। ऐसा क्यों?’’
संत दादू दयाल जी बोले, ‘‘वह मेरी निंदा करके मुझे स्मरण कराता रहता था कि यह संसार कांटों से भरा है। वह मुझे ज्ञान और त्याग का अहंकार नहीं होने देता था। यह सब उसने मेरे लिए किया वह भी मुफ्त में। वह बड़ा नेक इंसान था। अब उसके जाने पर मेरे मन का मैल कौन धोएगा।’’
इतना ही नहीं, इसके कुछ दिन बाद वह व्यक्ति दिव्य शरीर धारण करके संत दादू दयाल जी के सामने प्रकट हुआ। उससे संत दादू दयाल जी ने पूछा, ‘‘तुम्हारी तो कुछ समय पहले मृत्यु हो चुकी थी?’’
उस व्यक्ति ने कहा, ‘‘आप जैसे परम संत की निंदा करने के पाप से मैं प्रेत योनि में चला गया था और कुछ दिनों से कष्ट पा रहा था परंतु कुछ दिनों के बाद मेरी मृत्यु की घटना सुनते ही आपने मेरा स्मरण किया और प्रभु से मेरे उद्धार की प्रार्थना भी की। मुझ जैसे निंदक पर भी आप जैसे महात्मा कृपा करते हैं। आप जैसे परम नाम जापक संत के संकल्प से मैं प्रेत योनि से मुक्त होकर दिव्य लोक को जा रहा हूं।’’