Edited By Jyoti,Updated: 14 Dec, 2019 11:24 AM
जब राजकुमार सिद्धार्थ ने महल छोड़ा, तब चन्ना राम नाम का सारथी भी उनके साथ निकला। जब राजकुमार ने बुद्धत्व प्राप्त किया, तो चन्ना भी भिक्षु बन गया।
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जब राजकुमार सिद्धार्थ ने महल छोड़ा, तब चन्ना राम नाम का सारथी भी उनके साथ निकला। जब राजकुमार ने बुद्धत्व प्राप्त किया, तो चन्ना भी भिक्षु बन गया। चन्ना शुरू से बुद्ध के साथ रहा था इसलिए वह बहुत अहंकारी हो चुका था। चन्ना हमेशा कहता, ''मैं अपने गुरु के साथ तब आया था जब वह महल छोड़ जंगल को निकल पड़े थे। उस समय मैं अपने मालिक का एकमात्र साथी था, और कोई नहीं था। अब लोग कह रहे हैं कि वे मुख्य शिष्य हैं, और इठला रहे हैं।"
जब बुद्ध ने चन्ना के बारे में सुना तो उन्होंने उसे इस व्यवहार के लिए चेतावनी दी। तब चन्ना चुप रहा लेकिन वहां से निकलते ही दोबारा उसने बुद्ध के 2 मुख्य शिष्यों को ताने मारने शुरू कर दिए। शिकायत फिर पहुंची तो बुद्ध ने फिर चेतावनी दी, लेकिन चन्ना नहीं बदला। बुद्ध ने चन्ना को 3 बार चेतावनी दी, फिर भी वह नहीं बदला। इस पर बुद्ध ने फिर चन्ना को बुलाया और कहा, ''चन्ना, ये 2 महान भिक्षु आपके लिए अच्छे मित्र हैं, आपको उनके साथ जुडऩा चाहिए और उनके साथ आपका संबंध अच्छा होना चाहिए।"
उस वक्त तो चन्ना मान गया, लेकिन कुछ समय बाद फिर उसने उन 2 शिष्यों को परेशान करना शुरू कर दिया। बात बुद्ध तक पहुंची तो वह बोले, ''वह मेरे जीते तो नहीं बदलेगा, लेकिन मेरे परिनिर्वाण के बाद जरूर बदल जाएगा।"
अपने परिनिर्वाण की पूर्व संध्या पर बुद्ध ने भिक्षु आनंद को बिस्तर के पास बुलाया और उन्हें चन्ना पर ब्रह्मदंड लगाने को कहा। ब्रह्मदंड यानी कि फिर हर भिक्षु चन्ना को अनदेखा करता। जैसे ही चन्ना को ब्रह्मदंड का पता चला, पछतावे से वह बेहोश हो गया। जब उसे होश आया, तब उसने अपना अपराध स्वीकार किया और क्षमा मांगी। बुद्ध ने बताया कि धैर्य रखा जाए तो बुरे से बुरे लोगों को भी सुधारा जा सकता है।