Edited By Jyoti,Updated: 19 May, 2021 01:03 PM
एक दिन की बात है। एक साधु गांव के बाहर वन में स्थित अपनी कुटिया की ओर जा रहा था। रास्ते में बाजार पड़ा। बाजार से गुजरते हुए साधु की दृष्टि एक दुकान में र
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एक दिन की बात है। एक साधु गांव के बाहर वन में स्थित अपनी कुटिया की ओर जा रहा था। रास्ते में बाजार पड़ा। बाजार से गुजरते हुए साधु की दृष्टि एक दुकान में रखी ढेर सारी टोकरियों पर पड़ी। उनमें खजूर रखे हुए थे।
खजूर देखकर साधु का मन ललचा गया। उसके मन में खजूर खाने की इच्छा जाग उठी। किंतु उस समय उसके पास पैसे नहीं थे। उसने अपनी इच्छा पर नियंत्रण रखा और कुटिया चला आया।
कुटिया पहुंचने के बाद भी खजूर का विचार साधु के मन से नहीं निकल पाया। रात में वह ठीक से सो भी नहीं पाया। अगली सुबह जब वह जागा, तो खजूर खाने की अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए पैसे की व्यवस्था करने के बारे में सोचने लगा।
सूखी लकडिय़ां बेचकर खजूर खरीदने लायक पैसों की व्यवस्था अवश्य हो जाएगी। यह सोचकर वह जंगल में गया और सूखी लकडिय़ां बीनने लगा। काफी लकडिय़ां एकत्रित कर लेने के बाद उसने उनका गट्ठर बनाया और बाजार की ओर चल पड़ा।
बाजार में उसने सारी लकडिय़ां बेच दीं। अब उसके पास इतने पैसे इकट्ठे हो गए, जिनसे वह खजूर खरीद सके। वह बहुत प्रसन्न हुआ और खजूर की दुकान में पहुंचा। सारे पैसों से उसने खजूर खरीद लिए और वापस अपनी कुटिया की ओर चल पड़ा।
इसी बीच उसके मन में विचार आया कि आज मुझे खजूर खाने की इच्छा हुई। हो सकता है कल किसी और वस्तु की इच्छा हो जाए। कभी नए वस्त्रों की इच्छा जाग जाएगी, तो कभी अच्छे घर की। मैं तो साधु व्यक्ति हूं। इस तरह से तो मैं इच्छाओं का दास बन जाऊंगा। यह विचार आते ही साधु ने खजूर खाने का विचार त्याग दिया और एक गरीब को सारे खजूर दे दिए। इस तरह उसने स्वयं को इच्छाओं का दास बनने से बचा लिया।