स्वयं से स्वयं का उद्धार करना चाहिए, तपन नहीं

Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Jan, 2018 05:36 PM

motivational concept

पके हृदय के द्वार बड़ी आसानी से छोटी-छोटी कुंजियों से खुल जाएंगे, उनमें से एक कुंजी है ‘धन्यवाद’ कहना और दूसरी कुंजी ‘कृपया’ कहना। तात्पर्य यह है कि व्यक्ति अपनी शालीनता, विनम्रता, सरलता का परिचय इन उद्गारों से दे सकता है।

पके हृदय के द्वार बड़ी आसानी से छोटी-छोटी कुंजियों से खुल जाएंगे, उनमें से एक कुंजी है ‘धन्यवाद’ कहना और दूसरी कुंजी ‘कृपया’ कहना। तात्पर्य यह है कि व्यक्ति अपनी शालीनता, विनम्रता, सरलता का परिचय इन उद्गारों से दे सकता है। विनम्रता और कुलीनता किसी भी व्यक्ति के शृंगार के लिए नितांत आवश्यक है और किसी भी महान व्यक्ति के लिए इससे बड़ा कोई और दूसरा सद्गुण नहीं हो सकता। इस विषय में भारतीय और पाश्चात्य सभी मनीषियों ने इसकी प्रशंसा मुक्त कंठ से की है, ‘विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम्।’ अत: मानव जीनव के जितने सद्गुण हैं, मनुष्यता के जो भी तत्व है उनका ठोस आधार एकमात्र विनम्रता है।

 

गोस्वामी तुलसीदास जी ने  ‘बरवहिं जलद् भूमि निअराएं, जथा नवहिं बुध विद्या पाएं’ लिखकर विद्या को विनम्रता का मूल कारण माना है। अपनी लघुता के कारण ही चींटी शक्कर लेकर चलती है और हाथी सिर पर धूल लिए फिरता है। सरलता के परिप्रेक्ष्य में मनुष्य स्वयं शांति का अनुभव करता है और व्यवहार से दूसरों को भी शांति मिलती है और अर्थात अहंकार को नष्ट किए बिना विनम्रता नहीं आ सकती।

 

उद्धेरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसाद येत। आत्मैव ह्यात्मनो बंधुरात्मैव रिपुरात्मन:।।


अर्थात स्वयं से स्वयं का उद्धार करना चाहिए, तपन नहीं। स्वयं ही स्वयं का मित्र है और स्वयं ही शत्रु है, अत: अपने स्थान पर ठीक हो जाएं तो आप श्रेष्ठ बन जाएंगे। परोपकारी जीव सदा सर्वदा विनम्र, शीलवान व सरल होता है।


भवन्ति नम्रास्तरव: फलोद्गमैर्नवाम्बुभिर्दूविलम्बिनो घना:।
अनुद्धता: सत्पुरुषा: समृद्धिभि: स्वभाव एवैष परोपकारिणाम्।।


वृक्ष फलों के भार से झुक जाते हैं, सत्पुरुष समृद्धि प्राप्त कर परम विनीत बन जाते हैं। यूं भी जो व्यक्ति विनम्र, सरल होते हैं, निश्चय ही प्रभु उनका मार्गदर्शन करते हैं। आर्थर हेल्पस ने लिखा है,‘‘विनम्रता मानव के कितने ही हार्दिक कष्टों की अचूक महौषधि है।’’
अभिमान यदि रात्रि का अंधकार है तो विनम्रता सहजता दिन का उज्ज्वल प्रकाश। अत: इन क्षणों में हम महत्ता के अधिक निकट होते हैं। सद्गुण और विद्या स्वर्ण के समान है यदि इन्हें रगड़ कर चमकाया न जाए तो वे बहुत अंशों में अपना सौंदर्य खो देंगे। तात्पर्य यह है कि यदि स्वर्ण के समान मूल्यवान विद्वता हमारे पास है तो हमारी विनम्रता उसमें सुगंध और चमक का कार्य करेगी।

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