Edited By Jyoti,Updated: 11 May, 2018 10:11 AM
एक नवयुवक नकारात्मक विचारों से घिरा रहता था। उसे लगता कि वह अनाकर्षक है, कोई उसे पसंद नहीं करता और जिस लड़की से विवाह करना चाहता है, वह भी हाथ से निकल जाएगी। ऐसी नकारात्मक सोच का उसके काम पर भी प्रभाव पड़ा और उसने नौकरी छोड़ दी। वह ज्यादातर अकेला...
एक नवयुवक नकारात्मक विचारों से घिरा रहता था। उसे लगता कि वह अनाकर्षक है, कोई उसे पसंद नहीं करता और जिस लड़की से विवाह करना चाहता है, वह भी हाथ से निकल जाएगी। ऐसी नकारात्मक सोच का उसके काम पर भी प्रभाव पड़ा और उसने नौकरी छोड़ दी। वह ज्यादातर अकेला रहना पसंद करता। ऐसे में किसी शुभचिंतक ने उसे हिल स्टेशन पर जाने की सलाह दी कि शायद बदले माहौल से उसे कुछ सहायता मिले। उसे भी यह सलाह जंच गई। जब वह शहर से बाहर जाने के लिए निकलने लगा तो उसके पिता ने उसे एक पत्र दिया और कहा कि वह इसे अपने गंतव्य स्थल पर पहुंचकर ही खोले। वह हिल स्टेशन पर पहुंच तो गया, किंतु यहां भी खुद को बेहतर महसूस नहीं कर पा रहा था।
तभी उसे अपने पिता द्वारा लिखे पत्र की याद आई। उसने पत्र खोला। उसमें लिखा था, ‘‘बेटा, तुम घर से 1500 मील दूर हो, मगर मैं जानता था कि तुम्हें वहां भी शांति नहीं मिलेगी क्योंकि तुम अपने साथ वहां भी वही वस्तु ले गए, जो तुम्हारे क्लेश का कारण है। वह है तुम्हारी विचारधारा। वही तुम्हारे दुख का मूल कारण है। मनुष्य अपने मन में जैसा सोचता है, वैसा ही होता है। तुम्हें जब यह ज्ञान हो जाए तो घर लौट आना। तुम अपने आप अच्छे हो जाओगे।’’
पत्र पढ़ कर युवक के मन का सारा विकार धुल गया। वह जीवन में पहली बार स्पष्ट और विवेकपूर्ण ढंग से सोचने लगा। इससे उसे अहसास हुआ कि वह अब तक कितना गलत था। वह सारे संसार और उसके हर प्राणी को बदलना चाहता था, जबकि जरूरत इस बात की थी कि वह अपने विचार तथा दृष्टिकोण को बदलता। अगले ही दिन वह युवक घर लौटा और जल्द ही उसने नौकरी पर जाना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में उसने मनचाही लड़की के साथ विवाह भी कर लिया।
इस तरह विचारधारा बदलने के साथ ही उसकी पूरी दुनिया बदल गई और वह अपने जीवन में सुखी रहने लगा।