Edited By Jyoti,Updated: 03 Jun, 2020 05:41 PM
भारत-पाक युद्ध के दौरान एक बार शास्त्री जी को जयपुर जाना पड़ा। जब वह गाड़ी में स्टेशन से कार्यालय की ओर जा रहे थे
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भारत-पाक युद्ध के दौरान एक बार शास्त्री जी को जयपुर जाना पड़ा। जब वह गाड़ी में स्टेशन से कार्यालय की ओर जा रहे थे, उसी वक्त वहां चार व्यक्ति एक पालकी लेकर चल रहे थे, और कुछ दूरी पर दूल्हा भी घोड़ी पर सवार था। मोटरसाइकिल सवार पुलिस वाले बारात के समीप पहुंचे और बोले,''कुछ देर के लिए आप एक ओर हो जाएं। प्रधानमंत्री जी की गाड़ी आ रही है।
बारात किनारे हुई और शास्त्री जी की गाड़ी बगल से गुजरने लगी। यह देखकर डोली में से वधू ने उनका अभिवादन किया। जवाब देने के लिए शास्त्री जी ने ड्राइवर से गाड़ी रोकने के लिए कहा। शास्त्री जी को अनुमान हो गया था कि वधू उनसे कुछ कहना चाहती है। वह गाड़ी से बाहर निकले। नववधू ने बिना एक पल सोचे अपने हाथों से सोने की चूड़ियां उतार कर शास्त्री जी को दे दीं और बोली,''यह तुच्छ भेंट देश के लिए लड़े जाने वाले युद्ध में मेरा छोटा-सा योगदान है। कृपया इसे स्वीकार करें।
इसके बाद वह शास्त्री जी के पैर छूने बढ़ी तो पीछे हटते हुए वह बोले,''हम बेटियों को पांव नहीं छूने देते।
अब तक दूल्हा भी घोड़ी से उतरकर आ गया था। उसने शास्त्री जी के चरण स्पर्श किए और फिर अपनी नवविवाहिता पत्नी की ओर देखते हुए बोला,''मुझे अपनी पत्नी पर गर्व है, जिसने आज के दिन भी देशहित को सर्वोपरि समझा।
वर की बात सुनकर शास्त्री जी बोले,''बेटा, सिर्फ तु ही नहीं, बल्कि पूरे देश को तुम्हारी पत्नी पर गर्व है।
इसके बाद तो वहां बाराती भी एकत्रित हो गए। शास्त्री जी सबके साथ पुराने परिचितों की तरह मिले। बारातियों ने मुक्त कंठ से शास्त्री जी की प्रशंसा की और बोले,''अब भारत को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।