Edited By Jyoti,Updated: 10 Jul, 2020 11:03 AM
महान भागवताचार्य संत रामचंद्र डोगरे जी महाराज के पास एक जिज्ञासु भक्त पहुंचे। बोले, ‘‘महाराज, धनाभाव के कारण मैं परोपकार नहीं कर पाता। मुझे सेवा व परोपकार का सरल उपाय सुझाएं।’’
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महान भागवताचार्य संत रामचंद्र डोगरे जी महाराज के पास एक जिज्ञासु भक्त पहुंचे। बोले, ‘‘महाराज, धनाभाव के कारण मैं परोपकार नहीं कर पाता। मुझे सेवा व परोपकार का सरल उपाय सुझाएं।’’
संत डोगरे जी ने कहा, ‘‘भगवान ने तुम्हें दो हाथ दिए हैं, इनसे सत्कर्म तथा सेवा करने से जीवन सफल होता है।’’
उन्होंने जिज्ञासु को समझाया ‘सेवा केवल धन से नहीं की जा सकता। अपने हाथों से सेवा सत्कर्म करना चाहिए। रात को सोने से पूर्व हमें मनन करना चाहिए कि इन हाथों से दिन भर कोई सत्कर्म हुआ है या नहीं। हम औषधालय पहुंचकर रोगियों की सेवा कर सकते हैं। सड़क पार कर रहे नेत्रहीन या अपंग व्यक्ति की सहायता कर सेवा का पुण्य अर्जित कर सकते हैं।’
‘हमें पग-पग पर सत्कर्म करने का अवसर मिलता है। यदि पूरे दिन इन हाथों से कोई सत्कर्म न हुआ हो तो दूसरे दिन हमें भोजन न करके उपवास करना चाहिए।’
इन शब्दों ने भक्त की जिज्ञासा का समाधान कर दिया। वे उसी दिन से दूसरों की सेवा में लग गए। —शिव कुमार गोयल