संसार को है प्रेम महाविद्यालय की भी अधिक जरूरत

Edited By Jyoti,Updated: 08 Aug, 2020 06:35 PM

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महान क्रांतिकारी मुरसान (अलीगढ़) के राजा महेंद्रप्रताप ने अपने जीवन के अनेक वर्ष भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष करते हुए विदेशों में व्यतीत किए।

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महान क्रांतिकारी मुरसान (अलीगढ़) के राजा महेंद्रप्रताप ने अपने जीवन के अनेक वर्ष भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष करते हुए विदेशों में व्यतीत किए। वे संसार के अनेक राजाओं तथा राष्ट्राध्यक्षों से मिलते, उनसे भारत की स्वाधीनता के आंदोलन में योगदान करने की प्रार्थना करते। अपनी मातृभूमि को स्वाधीन कराने की धुन में उन्होंने अपनी जवानी ही दांव पर लगा दी थी।
लगभग 20 वर्ष बाद वे भारत लौटे। उनकी एकमात्र पुत्री का भी बीमारी के कारण निधन हो गया। उनके रिश्तेदारों तथा मित्रों ने उनसे प्रार्थना की कि वे राजवंश को सुचारू रूप से चलाने के लिए किसी बच्चे को गोद ले लें।

इस महान क्रांतिकारी देशभक्त ने उत्तर दिया, ‘‘मैंने अपने वंश को अमर रखने के लिए दत्तक पुत्र गोद ले लिया है और उसका नाम है ‘प्रेम महाविद्यालय’। राजा साहब ने कुछ ही दिन पहले वृंदावन में प्रेम विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। उन्होंने घोषणा की थी, ‘‘प्रेम महाविद्यालय सामाजिक व राष्ट्रीय चेतना पैदा करने वाला एक अलग किस्म का शिक्षा केंद्र होगा। यदि यह मेरे सपने को पूरा करने में सफल रहा तो मुझे ऐसा अनूठा संतोष प्राप्त होगा जो किसी संतान से भी शायद ही मिल सके।’’

—शिव कुमार गोयल

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