Edited By Jyoti,Updated: 03 Oct, 2020 11:16 AM
स्वामी शिवानंद सरस्वती जी महाराज उन दिनों मलाया में रहकर चिकित्सा कार्य में सक्रिय थे। अंग्रेजों के रबर के बगीचों में भारतीय श्रमिक भी काम करते थे।
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स्वामी शिवानंद सरस्वती जी महाराज उन दिनों मलाया में रहकर चिकित्सा कार्य में सक्रिय थे। अंग्रेजों के रबर के बगीचों में भारतीय श्रमिक भी काम करते थे। स्वामी जी रबर के एक बगीचे के पास स्थित अपनी क्लीनिक में बैठकर रोगियों की चिकित्सा सेवा के लिए तत्पर रहते थे। एक बार एक गरीब श्रमिक की पत्नी गंभीर रूप से बीमार हो गई। श्रमिक रोता हुआ उनके पास पहुंचा और बोला, ‘‘महाराज, मेरे पास एक रुपया तक नहीं है। अपनी पत्नी का इलाज कैसे कराऊंगा।’’
स्वामी जी ने कहा, ‘‘चिंता न करो, उसे लाकर मुझे दिखाओ।’’
उन्होंने महिला के शरीर की जांच की तथा दवा की व्यवस्था कर दी। जब वह चलने लगा तब वे बोले, ‘‘इसे पौष्टिक भोजन देना बहुत जरूरी है, लो ये रुपए लेते जाओ। इसे दूध तथा फल ज़रूर देना, तभी यह स्वस्थ हो पाएगी।’’
गरीब श्रमिक स्वामी जी में भगवान के दर्शन कर उनके आगे नतमस्तक हो उठा। कुछ ही वर्ष बाद स्वामी जी अपना मकान, क्लीनिक सब कुछ मलाया में छोड़कर भारत लौट आए। उन्होंने वर्षों तक हिमालय में साधना-तपस्या करने के बाद ऋषिकेश में दिव्य जीवन संघ की स्थापना की।
—शिव कुमार गोयल