Edited By Jyoti,Updated: 30 Dec, 2020 05:52 PM
कई बार दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियां झेलने वाला व्यक्ति सोचता है कि वह इसकी भरपाई का हकदार है। कई बार कोई व्यक्ति सोचता है कि वह बाकी हर व्यक्ति से बेहतर है, इसलिए वह पुरस्कार का हकदार है।
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कई बार दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियां झेलने वाला व्यक्ति सोचता है कि वह इसकी भरपाई का हकदार है। कई बार कोई व्यक्ति सोचता है कि वह बाकी हर व्यक्ति से बेहतर है, इसलिए वह पुरस्कार का हकदार है। हालांकि हम दूसरे लोगों में यह गुण बड़ी जल्दी पहचान लेते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि हम सभी किसी न किसी समय हकदार महसूस करते हैं और अक्सर अपने इस दोष को नहीं पहचान पाते।
हम एक ऐसे संसार में रहते हैं, जहां अधिकारों और विशेषाधिकारों में अक्सर गलतफहमी हो जाती है। अक्सर लोग सोचते हैं कि उन्हें खुश रहने का अधिकार है या सम्मानजनक ढंग से व्यवहार किए जाने का अधिकार है, भले ही अपनी मनचाही चीज पाने के लिए उन्हें दूसरों के अधिकारों का अतिक्रमण करना पड़े। विशेषाधिकार अर्जित करने की बजाय वे इस तरह व्यवहार करते हैं, मानो समाज किसी तरह से उनका ऋणी हो।
संसार आपको कोई चीज देने के लिए बाध्य है, यह भावना हमेशा श्रेष्ठता के अहसास की वजह से नहीं होती। कई बार तो यह अन्याय के अहसास की वजह से होती है। मिसाल के तौर पर जिस व्यक्ति का बचपन मुश्किल रहा है, वह अपने क्रैडिट कार्ड का अधिकतम इस्तेमाल करके वे सारी चीजें खरीद लेता है, जो उसे बचपन में कभी नहीं मिली थीं। वह सोच सकता है कि संसार अच्छी चीजें पाने के अधिकार के लिए उसका ऋणी है क्योंकि बचपन में उसने बहुत दुख झेला था। इस तरह का हक समझना भी खुद को श्रेष्ठ मानने जितना ही नुक्सानदेह हो सकता है।