Edited By Jyoti,Updated: 07 Apr, 2021 02:51 PM
कृष को बचपन से चित्रकारी करने का शौक था। उसकी चित्रकारी स्कूल व कालेज के दिनों में उसकी पहचान थी। कृष कहता कि चित्रकारी मेरा शौक है, सम्मान पाने की इच्छा नहीं। कहीं सर्विस नहीं की।
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कृष को बचपन से चित्रकारी करने का शौक था। उसकी चित्रकारी स्कूल व कालेज के दिनों में उसकी पहचान थी। कृष कहता कि चित्रकारी मेरा शौक है, सम्मान पाने की इच्छा नहीं। कहीं सर्विस नहीं की। वह चित्रकार ही रहा। अपनी चित्रकारी में अनेक प्रकृति, फूलों का रूप, विभिन्न व्यक्तित्व के चित्र अजीब सौंदर्य उनमें भर देता था। दरिद्रता व खामोश जीवन जीता था। उसने लालच नहीं रखा।
चित्रकारी के माध्यम से वह नि:स्वार्थ भाव से चित्रकला की सेवा करता रहा। छोटे-छोटे बच्चों में चित्रकारी से प्रेमभाव जगाने के लिए अवश्य कोशिश करता रहता। कई बच्चों को चित्रकला में नाम भी मिला। वह कहा करता ‘‘कि चित्रकारी नि:स्वार्थ भावों की कला है। धन या सम्मान पाना नहीं। कला बाजारी वस्तु नहीं। हृदय संगीत है। आभूषण है।’’
जीवन की अंतिम घड़ियों तक उसका लक्ष्य रहा। उसकी चित्रकला से दोस्तों ने फायदा उठाने का प्रयास भी किया। प्रशंसा पत्र प्राप्त किए। वह हंस कर कह देता कि छोटी-छोटी चित्रकारी के लिए आज सम्मान पाने की होड़ है। साहित्य क्षेत्र हो अथवा चित्रकला, सम्मान पाते हैं और दिखावे के लिए वापस करते हैं।
अचानक हृदय गतिरोध से उसकी मृत्यु हो गई। अब उसे देश का महान चित्रकार कहा जाने लगा। जीवनकाल में उसे किसी ने नहीं पूछा कि वह कलाकार है। अपना सारा जीवन लगा दिया। वह सही अर्थों में एक कलाकार था। उसको जीवन में कभी सम्मान नहीं मिला। मृत्यु के बाद ‘महान चित्रकार’ से सम्मानित किया गया।