Edited By Jyoti,Updated: 14 Apr, 2021 02:10 PM
ईश्वर चंद्र विद्यासागर कलकत्ता में अध्यापन कार्य करते थे। वेतन का उतना ही अंश घर परिवार के लिए खर्च करते जितने में कि औसत नागरिक स्तर का
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ईश्वर चंद्र विद्यासागर कलकत्ता में अध्यापन कार्य करते थे। वेतन का उतना ही अंश घर परिवार के लिए खर्च करते जितने में कि औसत नागरिक स्तर का गुजारा चल जाता। शेष भाग वह जरूरतमंदों की सहायता में खर्च कर देते थे। आजीवन उनका यही व्रत रहा।
एक दिन वह बाजार में चले जा रहे थे। एक हताश युवक ने भिखारी की तरह उनसे एक पैसा मांगा। विद्यासागर दानी तो थे पर वह किसी की ठगी में न आते थे। युवक से हट्टे-कट्टे होते हुए भी भीख मांगने का कारण पूछा। सारी स्थिति जानने के बाद एक पैसा देते हुए उससे पूछा कि यदि अधिक मिल जाए तो क्या करोगे? युवक ने कहा कि यदि एक रुपया मिला तो उसका सौदा लेकर गलियों में फेरी लगाने लगूंगा और अपने परिवार का पोषण करने में स्वावल बी हो जाऊंगा। उदार विद्यासागर ने उसे एक रुपया और दे दिया। उसे लेकर उसने छोटा व्यापार आरंभ कर दिया। काम दिन-ब-दिन बढऩे लगा। कुछ दिन में वह बड़ा व्यापारी बन गया।
एक दिन विद्यासागर उस रास्ते से निकल रहे थे कि व्यापारी दुकान से उतरा और उनके चरण छूकर कहा कि यह आपके दिए गए एक रुपए का चमत्कार है। विद्यासागर प्रसन्न हुए और कहा कि जिस प्रकार तुमने सहायता प्राप्त करके उन्नति की उसी प्रकार का लाभ जरूरतमंदों को भी देते रहो। व्यापारी ने वैसा ही करते रहने का वचन दिया।