Edited By Jyoti,Updated: 17 Apr, 2021 12:09 PM
एक बार समर्थ रामदास स्वामी भिक्षा मांगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगाई, ‘‘जय-जय रघुवीर समर्थ।’’ घर से महिला बाहर आई।
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एक बार समर्थ रामदास स्वामी भिक्षा मांगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगाई, ‘‘जय-जय रघुवीर समर्थ।’’ घर से महिला बाहर आई। उसने उनकी झोली में भिक्षा डाली और कहा, ‘‘महात्मा जी, कोई उपदेश दीजिए।’’ स्वामी जी बोले, ‘‘आज नहीं, कल दूंगा।’’
दूसरे दिन स्वामी जी ने पुन: उस घर के सामने आवाज दी-‘‘जय-जय रघुवीर समर्थ।’’ उस घर की स्त्री ने उस दिन खीर बनाई थी, जिसमें बादाम-पिस्ते भी डाले थे। वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आई। स्वामी जी ने अपना कमंडल आगे कर दिया। वह स्त्री जब खीर डालने लगी, तो उसने देखा कि कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ा है। उसके हाथ ठिठक गए। वह बोली, ‘‘महाराज। यह कमंडल तो गंदा है।’’
स्वामी जी बोले, ‘‘हां, गंदा तो है किंतु खीर इसमें डाल दो।’’ स्त्री बोली, ‘‘नहीं महाराज, तब तो खीर खराब हो जाएगी। दीजिए यह कमंडल, मैं इसे शुद्ध करके लाती हूं।’’
स्वामी जी बोले, ‘‘मतलब जब यह कमंडल साफ हो जाएगा, तभी खीर डालोगी न?’’
स्त्री ने कहा, ‘‘जी महाराज।’’
स्वामी जी बोले, ‘‘मेरा भी यही उपदेश है। मन में जब तक ङ्क्षचताओं का कूड़ा-कचरा और बुरे संस्कारों का गोबर भरा है तब तक उपदेशामृत का कोई लाभ न होगा। यदि उपदेशामृत पान करना है तो प्रथम अपने मन को शुद्ध करना चाहिए, कुसंस्कारों का त्याग करना चाहिए, तभी सच्चे सुख और आनंद की प्राप्ति होगी।’’