Edited By Jyoti,Updated: 08 May, 2021 01:56 PM
रामपुर रियासत के राजा रणवीर सिंह प्रजा वत्सल और कलाप्रेमी थे। एक दिन एक बहुरूपिया महादेवी का रूप धरकर उनके दरबार में आया। उसे इस रूप में देखकर कोई कह
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रामपुर रियासत के राजा रणवीर सिंह प्रजा वत्सल और कलाप्रेमी थे। एक दिन एक बहुरूपिया महादेवी का रूप धरकर उनके दरबार में आया। उसे इस रूप में देखकर कोई कह ही नहीं सकता था कि यह महादेवी नहीं, बहुरूपिया है। यह देखकर राजा प्रसन्न हुआ। राजा ने उससे कहा कि तुम्हारी कला का लोहा मैं तब मानूंगा, जब तुम साधु वेश धरो और पहचान में न आओ।
यह सुनकर बहुरूपिया दरबार से चला गया और बहुत दिनों तक नजर नहीं आया। एक दिन चर्चा चली कि नगर में एक सेठ की बगिया में एक वीतरागी साधु आकर ठहरे हैं। वे बड़े प्रतापी हैं और किसी से भेंट में एक धेला भी नहीं लेते हैं।
साधु की महिमा सुनकर राजा भी साधु के दर्शन के लिए सेठ के बगीचे में पहुंचा। राजा ने साधु को बहुमूल्य रत्न और आभूषण भेंट करने चाहे, लेकिन साधु ने उन्हें ठुकरा दिया। घटना के अगले दिन वही बहुरूपिया राजा के दरबार में पहुंचा और राजा को साधुवेश धरने की चुनौती की याद दिलाते हुए बताया कि वही साधु बनकर सेठ की बगिया में ठहरा था। यह जानकर राजा प्रसन्न हुआ और बहुरूपिए को ढेर सारे पुरस्कार दिए। किंतु राजा ने एक प्रश्र भी किया।
उसने बहुरूपिए से पूछा, ‘‘कि जब उसने साधु वेश धर रखा था, तो उसे अनेक रत्न आभूषण दिए गए थे उन्हें लेने से इंकार क्यों किया था?’’
इस पर बहुरूपिए ने कहा, ‘‘कि हे महाराज! उस समय मैं साधु वेश में था, इसलिए भेंट लेना उस पद की गरिमा के विरुद्ध था।’’ —रमेश जैन