Edited By Jyoti,Updated: 12 May, 2021 12:57 PM
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
अकबर तानसेन के गुरु हरिदास का गायन सुनने के लिए बहुत उत्सुक थे लेकिन उनके दिल्ली आने की उन्हें कोई उम्मीद न थी और न ही यह भरोसा था कि
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
अकबर तानसेन के गुरु हरिदास का गायन सुनने के लिए बहुत उत्सुक थे लेकिन उनके दिल्ली आने की उन्हें कोई उम्मीद न थी और न ही यह भरोसा था कि वृंदावन में कभी वे उनके सामने गाना गाएंगे।
अकबर के बार-बार निवेदन करने पर तानसेन ने एक उपाय सोचा। अकबर साधारण वेश में वृंदावन पहुंचे और हरिदास की कुटिया के बाहर छिपकर बैठ गए। तानसेन इस बीच कुटिया के भीतर जा गुरु के सामने बैठ गाने लगे। तानसेन ने एक जगह जान-बूझ कर गलती कर दी।
शिष्य की भूल सुधारने के लिए हरिदास खुद गाने लगे। इस तरह सम्राट अकबर ने हरिदास का गायन सुना। लौटते हुए उन्होंने तानसेन से सवाल किया, ‘‘मैंने तुम्हें कितनी ही बार गाना गाते सुना है। तुम अच्छा गाते हो, पर फिर भी वैसा नहीं गाते जैसे तु हारे गुरु गाते हैं। उनका स्वर सौंदर्य कुछ और ही था। आखिर, इसकी क्या वजह है?’’
तानसेन ने कहा, ‘‘जहांपनाह, इसकी वजह यह है कि मैं हिंदुस्तान के बादशाह के लिए गाता हूं और वे सारी दुनिया के मालिक के लिए गाते हैं। संगीत में ताकत तभी पैदा होती है, जब उसे प्रकृति के लिए और प्रकृति के बीच बैठ कर गाया जाए। दरबारों में ऐसा संगीत नहीं पैदा हो सकता।’’ —रमेश जैन