Edited By Jyoti,Updated: 01 Jun, 2021 05:50 PM
जापान का सेनापति नोबूनागा अपने सैनिकों के साथ दुश्मन का सामना करने रणभूमि की तरफ जा रहा था, पर उसके सैनिकों के हौसले पस्त थे। मन ही मन वे कुछ बुझे-बुझे से थे क्योंकि
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जापान का सेनापति नोबूनागा अपने सैनिकों के साथ दुश्मन का सामना करने रणभूमि की तरफ जा रहा था, पर उसके सैनिकों के हौसले पस्त थे। मन ही मन वे कुछ बुझे-बुझे से थे क्योंकि दुश्मन बहुत ताकतवर था। नोबूनागा से अपने सैनिकों के दिल की बात छिपी न थी। कुछ दूर निकल आने पर एक पूजा स्थल दिखाई पड़ा। नोबूनागा ने अपने सैनिकों को वहीं रुकने के लिए कहकर पूजा स्थल के अंदर जाते हुए कहा, ‘‘देखो, मैं उपासना करने अंदर जा रहा हूं। कुछ देर में लौटूंगा। तुम लोग बाहर मेरा इंतजार करना।’’
थोड़ा वक्त बीत जाने पर नोबूनागा पूजा स्थल से बाहर आया। तब उसके चेहरे पर खुशी थी। उसने जेब से एक सिक्का निकाला। उसे सैनिकों को दिखाते हुए कहा, ‘‘अब मैं इस सिक्के को उछालता हूं। अगर राजा की छपाई वाला हिस्सा ऊपर आया तो समझना लड़ाई में जीत हमारी होगी और अगर इसका उलटा हुआ तो फिर समझना युद्ध में हमारी पराजय।’’
यह कहकर नोबूनागा ने वह सिक्का हवा में उछाल दिया। सिक्का टन से जमीन पर गिरा। उस पर छपा राजा का चेहरा मानो सबको मुस्कुराकर जीत का विश्वास दिला रहा था। जोश और उमंग में भर सब सैनिक जय-जयकार कर उठे। प्रबल उत्साह से सब सेनापति के पीछे-पीछे युद्धभूमि की तरफ बढऩे लगे।
युद्ध समाप्त हुआ। जीत नोबूनागा की सेना की हुई। अपने खेमों में लौटकर सब जीत का जश्र मनाने लगे। नोबूनागा अपने तम्बू में था। पास ही उपसेनापति बैठा था। वह नोबूनागा से बोला, ‘‘आखिर ईश्वर का वरदान काम आया। युद्ध जीत कर रहे।’’
सुनकर नोबूनागा ने सिक्का उपसेनापति को दिखाकर हंसकर कहा, ‘‘यह लड़ाई हमने अपने मनोबल और दृढ़ विश्वास से जीती है।’’ —रमेश जैन