Edited By Jyoti,Updated: 05 Jun, 2021 11:13 AM
अमरीका में वेदांत का प्रचार करके भारत लौटते हुए स्वामी रामतीर्थ जापान गए। उन्हें वहां एक विद्यालय में आमंत्रित किया गया। एक नन्हे छात्र से स्वामी जी ने सप्रेम
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अमरीका में वेदांत का प्रचार करके भारत लौटते हुए स्वामी रामतीर्थ जापान गए। उन्हें वहां एक विद्यालय में आमंत्रित किया गया। एक नन्हे छात्र से स्वामी जी ने सप्रेम पूछा, ‘‘बच्चे! तुम किस धर्म को मानते हो?’’
‘‘बौद्ध धर्म को।’’ छात्र ने सादर उत्तर दिया। स्वामी जी ने पुन: पूछा, ‘‘बुद्ध के विषय में तुम्हारे क्या विचार हैं?’’
छात्र ने सादर उत्तर दिया, ‘‘बुद्ध तो भगवान हैं।’’
इतना कहकर उसने बुद्ध का ध्यान करके अपने देश की प्रथा के अनुसार भगवान बुद्ध को सम्मान के साथ प्रणाम किया। तब स्वामी जी ने छात्र से पुन: पूछा, ‘‘अच्छा बताओ, तुम कन्फ्यूशियस को क्या समझते हो?’’
छात्र ने बुद्धिमानी से उत्तर दिया, ‘‘कन्फ्यूशियस एक महान संत हैं?’’ और उसने पूर्ववत बुद्ध की तरह कन्फ्यूशियस का ध्यान करके उन्हें भी सादर प्रणाम किया। अंत में स्वामी जी ने प्रश्र किया, ‘‘अच्छा बताओ। यदि किसी दूसरे देश से जापान को जीतने के लिए एक भारी सेना आ जाए और उसके सेनापति बुद्ध अथवा कन्फ्यूशियस हों तो उस समय तुम क्या करोगे?’’ यह सुनकर छात्र का चेहरा तमतमा गया।
स्वामी जी की बात पर उसने गुस्से से भरकर कहा, ‘‘तब मैं अपनी तलवार से बुद्ध का सिर काट दूंगा और कन्फ्यूशियस को तो पैरों तले कुचल दूंगा।’’
छात्र का उत्तर सुनकर स्वामी जी ने उस विद्यार्थी को अपनी बांहों में भर लिया और उनके मुंह से निकल पड़ा, ‘‘शाबाश! वाह! जिस देश के बच्चे ऐसे देशभक्त हों, वह देश कभी किसी का गुलाम नहीं हो सकता और उसकी उन्नति को कोई नहीं रोक सकता।’’ -रमेश जैन