Edited By Jyoti,Updated: 28 Sep, 2021 12:39 PM
एक बड़े प्रतापी और सुयोग्य राजा थे। वह शासन करते हुए भी कठोर तपस्या किया करते थे जिससे उनका शरीर दुर्बल हो गया था। एक बार एक किसान उनके पास आया और पूछने लगा, ‘‘महाराज आप सम्राट हैं
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एक बड़े प्रतापी और सुयोग्य राजा थे। वह शासन करते हुए भी कठोर तपस्या किया करते थे जिससे उनका शरीर दुर्बल हो गया था। एक बार एक किसान उनके पास आया और पूछने लगा, ‘‘महाराज आप सम्राट हैं, करोड़ों लोगों की रक्षा और निर्वाह की व्यवस्था आपको करनी पड़ती है। ऐसी दशा में आप तपस्या कैसे कर पाते हैं?’’
राजा ने तेल से भरा हुआ कटोरा उसके हाथ में दिया और अपने कुछ सिपाही उसके साथ भेजते हुए कहा कि इस कटोरे को हाथ में लेकर तुम हमारी सेना को देखने जाओ। मेरे सिपाही तुमको सब जगह दिखलाएंगे, लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि कटोरे से तेल की एक बूंद भी बाहर गिरनी नहीं चाहिए। अगर तेल गिर गया तो तुमको मृत्युदंड दिया जाएगा।
सिपाही किसान को सेना दिखाने लेकर गए। वहां पर हजारों हाथी, अनगिनत घोड़े, तरह-तरह के अद्भुत अस्त्र-शस्त्र थे। किसान सबको देखता तो रहा, लेकिन उसका ध्यान पूरे समय तेल से भरे कटोरे पर ही रहा कि कहीं उसमें से तेल न गिर जाए। किसान सब जगह घूमकर फिर से राजा के पास आया तो राजा ने किसान से पूछा, ‘‘तुम सेना देख आए?
अच्छा बताओ तुम्हें क्या अच्छा लगा? उनमें से किस चीज को पाने की इच्छा तुमको हुई?’’
किसान ने कहा, ‘‘महाराज मैंने देखा तो सब कुछ लेकिन मेरा ध्यान नहीं अटका। मेरा ध्यान तो इस कटोरे की तरफ ही लगा हुआ था।’’
यह सुनकर राजा ने कहा, ‘‘इसी तरह राज्य कार्य करते हुए मेरा ध्यान मेरी आत्मा में लीन रहता है।’’