Edited By Jyoti,Updated: 28 Sep, 2021 03:50 PM
नाभिकुमार की गिनती पाटलीपुत्र के संपन्न परिवारों में होती थी। उनके पास अपार धन स पत्ति थी। लोग उनकी स पत्ति के बारे में चर्चा करते थे लेकिन उनका स्वभाव ऐसा था कि वह कभी भी अपनी संपत्ति
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नाभिकुमार की गिनती पाटलीपुत्र के संपन्न परिवारों में होती थी। उनके पास अपार धन स पत्ति थी। लोग उनकी स पत्ति के बारे में चर्चा करते थे लेकिन उनका स्वभाव ऐसा था कि वह कभी भी अपनी संपत्ति को दान में नहीं देते थे। उनके कई हितैषियों एवं शहर के विद्वानों ने उनका ध्यान इस ओर आकॢषत करवाया ,लेकिन उन्होंने कभी भी किसी की परवाह नहीं की।
एक रात किसी चोर ने उनके घर चोरी करने का निर्णय लिया। उसने उनके घर में सेंध लगाई। चोर ने बड़ी सावधानी से घर की मूल्यवान वस्तुएं एकत्रित कर ली। उसने उन वस्तुओं को ले जाने के उद्देश्य से एक पोटली में बांध लिया।
घर में मूल्यवान वस्तुओं की अधिकता होने के कारण पोटली बड़ी बन गई। चोर ने जैसे ही जाने के लिए पोटली उठाई तो अधिक वजन होने के कारण पोटली जमीन पर गिर गई। उसकी आवाज होते ही नाभिकुमार की आंख खुल गई। वह चोर के पास आए और पोटली उठाने में उसकी मदद करने लगे।
चोर को डर से कांपते हुए नाभिकुमार ने उससे कहा कि, ‘‘डरो मत, तुम ये सब ले जा सकते हो मगर तुम भी मेरे जैसे ही लगते हो। मैंने भी अपने जमा धन में से किसी औरों के लिए कुछ नहीं निकाला, इसलिए मेरा धन भी मुझ पर भार की तरह है। अगर तुम भी मेरी तरह नहीं करते और पोटली में से थोड़ा सामान निकाल लिए होते तो तु हारे लिए इसे उठाना आसान हो जाता।
‘‘खैर, तुम अब ये सामान ले जा सकते हो।’’ चोर यह सुनकर दंग रह गया। उसने कहा, ‘‘आप ये सब सामान वापस ले लीजिए और मुझे क्षमा कीजिए।’’ नाभिकुमार ने कहा, ‘‘तु हें एक ही शर्त पर क्षमा किया जा सकता है। तुम इसमें से कुछ धन ले लो और कोई काम धंधा शुरू कर दो। इस प्रकार मेरा धन परोपकार के काम में लग जाएगा और तु हारा जीवन भी सुधर जाएगा।’’
चोर ने वैसा ही किया।
उस दिन के बाद नाभिकुमार के जीवन में बड़ा परिवर्तन आ गया। वे हमेशा दूसरे लोगों की मदद करने लगा।
प्राय: हम सभी लोग भी इसी तरह पूरी जिंदगी धन संचय में लगा देते हैं। हम पैसे कमाने के साथ-साथ इसका कुछ भाग समाज के अच्छे कार्यों में भी लगाना चाहिए, जरूरतमंद लोगों को देना चाहिए। वहीं धन का सच्चा सदुपयोग होता है। —दीनदयाल मुरारका