Edited By Jyoti,Updated: 10 Oct, 2021 04:29 PM
नई दिल्ली से मेरठ तक सड़क अनूठी है क्योंकि वह प्लास्टिक से बनी है। यह जिस तकनीक से बनी है, उसे त्यागराजार कॉलेज
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नई दिल्ली से मेरठ तक सड़क अनूठी है क्योंकि वह प्लास्टिक से बनी है। यह जिस तकनीक से बनी है, उसे त्यागराजार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के कैमिस्ट्री प्रोफैसर राजगोपालन वासुदेवन ने विकसित किया है।
इस तकनीक से सड़क बनाते वक्त 90 प्रतिशत कोलतार में 10 प्रतिशत दोबारा इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक कचरा मिलाया जाता है।
साल 2000 की शुरूआत से ही भारत सड़क बनाने की तकनीक में प्लास्टिक-तार (प्लास्टिक और कोलतार) का प्रयोग कर रहा है। इस मामले में यह दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल है।
लेकिन अब और भी कई देश इस दौड़ में शामिल हो गए हैं। अब तो घाना से लेकर नीदरलैंड तक, सड़कें और दूसरे तमाम रास्ते बनाने के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल कर रहे हैं।
इससे वे कार्बन उत्सर्जन तो घटा ही रहे हैं, साथ ही समुद्र और लैंडफिल में फैंके गए प्लास्टिक को लाकर सड़क बनाने में इस्तेमाल करके अपनी सड़कों की उम्र भी बढ़ा रहे हैं।
ज्यादा प्लास्टिक का पैदा होना ही वासुदेवन के इस प्रयोग की प्रेरणा बन गया। इसी ने उन्हें सड़क बनाने में प्लास्टिक के इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया।
दरअसल सड़क बनाने में प्लास्टिक का इस्तेमाल की प्रक्रिया बेहद सरल है। इसके लिए ज़्यादा तकनीकी तामझाम की जरूरत नहीं पड़ती। इसमें प्लास्टिक कचरे के टुकड़े सड़क बनाने के लिए डाली गई गिट्टियों (पत्थर के टुकड़े) और रेत पर बिछा दिए जाते हैं।